तनिक नि: स्वार्थ की संभावनाएँ ढूँढता हूँ।।
डॉ रामकृष्ण मिश्रतनिक नि: स्वार्थ की संभावनाएँ ढूँढता हूँ।।
जहाँ पाथेय की अनुकूलता
कमतर दिखाई दे।
कुपथ की दीर्घता का दंश
लघुतर ही दिखाई दे।
नवल उत्साह रस की अपेक्षाएँ ढूँढता हूँ।।
कठिनता की चुनौती का
भला शृंगार तो हो ले।
नयी आराधना का मिथक सा
आकार तो खोले।
उसी आकार में समदर्शिताएँ ढूँढता हूँ।।
जटिल से प्रश्न उगते हैं
बिखर जाते हवाओं में।
खड़ा रहता कहीं नि:शब्द
जलती सी चिताओं में।
उपकृत कर सकें जो चेतना ढूँढता हूँ।।
रामकृष्ण
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कमतर दिखाई दे।
कुपथ की दीर्घता का दंश
लघुतर ही दिखाई दे।
नवल उत्साह रस की अपेक्षाएँ ढूँढता हूँ।।
कठिनता की चुनौती का
भला शृंगार तो हो ले।
नयी आराधना का मिथक सा
आकार तो खोले।
उसी आकार में समदर्शिताएँ ढूँढता हूँ।।
जटिल से प्रश्न उगते हैं
बिखर जाते हवाओं में।
खड़ा रहता कहीं नि:शब्द
जलती सी चिताओं में।
उपकृत कर सकें जो चेतना ढूँढता हूँ।।
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