झूठ पलता दरबार में

झूठ पलता दरबार में

नेतागणों के आड़ में ,
नेतागणों के प्यार में ।
थोक भाव झूठ पलता ,
नेतागणों के दरबार में ।।
बड़े नेता थोक विक्रेता ,
छोटे नेता फुटकर व्यापार ।
नेता नेता दोनों ही नेता ,
झूठ का रखते हैं भण्डार ।।
झूठ पर शासन टिका है ,
झूठ का भंडार अपार में ।
नेता नगरी है झूठी सगरी ,
झूठ पलता है दरबार में ।।
सत्य सदा पराजित होता ,
झूठ लेता मुकदमा जीत ।
सत्य विजेता बेल न होता ,
झूठ ही बने सबका मीत ।।
झूठ समाहित रग रग में है ,
झूठ समाहित संस्कार में ।
झूठ बिन नहीं स्थान रिक्त ,
झूठ पलता है दरबार में ।।
इक स्वार्थ झूठ बोलवाता ,
पुश्तों हेतु मालामाल बनाता ।
निर्धनों के भगवान दूसरे ,
नेताओं के अलग हैं विधाता ।।
ऊपर से नीचे तक भरा है ,
झूठ बसता यह हाड़ में ।
नेतागणों के छक्के लगते ,
झूठ पलता यह दरबार में ।।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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