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मेरी निगाह ------

मेरी निगाह ------

एक बार मेरी निगाह से
दुनिया देख लो
करना वही
जो तुम्हारी निगाह को अच्छा लगे।
तस्वीर के पीछे का हिस्सा भी
एक बार देख लो,
बेशक लगाने के लिए
सामने का हिस्सा ही चाहिए।
ख्वाबों को हकीकत की जमीन पर लाकर
एक बार देख लो,
माना की जीने की खातिर
ख्वाबों का सहारा ही चाहिए।
तुम मेरी निगाह का
राहगीर तो न बनो,
पर मेरी निगाह से राह मे बिखरे
काँटों को तो देख लो।
तुम जियो इस जहां मे शान से,
बेहयाई का मुखौटा ओढ़कर,
पर इंसानियत की खातिर एक बार
भूख से मरते बेबस इंसानों को तो देख लो।
तुम्हे बहुत कुछ मिल गया इस जहां मे,
शुक्रिया एक बार खुदा का करके तो देख लो।
जो तुमको न मिल सका
दुआ मांगना उसकी खातिर,
छोड़ कर तो देख लो।
करना वही जो तुम्हे अच्छा लगे,
एक बार मेरी निगाह से
दुनिया देखकर
देखना तो सीख लो।


मैं तुम्हे बतलाऊँगा
अनुभव ज़माने का,
पके हुए बालों का,
धंस चुके गालों का,
इतिहास के पन्नों मे सिमटे
कुछ अनकहे सवालों का।


माँ की ममता का,
समाज मे समता का,
स्वार्थी लोगों का,
हसीन धोखों का ,
देश पर कुर्बान वीरों का,
सत्ता पर छाये
कुछ उठाईगीरों का।
मैंने देखा है
अपनी बूढी आँखों से
बाप को कुर्बान होते हुए,
बच्चों की खातिर,
माँ का आँचल
तार-तार होते हुए।
फिर देखा है बेटे को,
चंद पैसों की खातिर,
मुँह फेर कर ओझल होते हुए।
एक बार मेरी निगाह से
ज़माने को देख लो।


देख लो कितनी झुर्रियां
मेरे चेहरे पर पड़ी हैं ,
हर किसी मे मर्यादाओं का
खोया हुआ इतिहास खोज लो।
उदासी के समंदर मे भी
उम्मीदों के मोती खोज लो।
एक बार मेरी निगाह से
इंसानियत का चेहरा देख लो।
दिल के जज्बात
कभी जुबां पर मत लाना,
दर्द का हर कतरा
दर्दे जिगर मे डुबाकर देख लो।
इंसानियत कि खातिर मर कर भी
जिन्दा रहना देख लो।
एक बार मेरी निगाह से
दुनिया को तुम देख लो।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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