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साहित्य सम्मेलन में महान नाट्य-शास्त्री डा चतुर्भुज की मनायी गयी जयंती,

राजा जी ने कहा था- "आपको जानते जानते ही लोग जानेंगे, जान लेंगे तो जाने न देंगे":-डा अनिल सुलभ

  • साहित्य सम्मेलन में महान नाट्य-शास्त्री डा चतुर्भुज की मनायी गयी जयंती,
  • पुस्तक 'अनल्प अशोक' का हुआ लोकार्पण, संक्रांति-भोज के साथ आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन

पटना, १५ जनवरी। हिन्दी-नाटक को नया रूप और बल देने में महान नाट्यशास्त्री डा चतुर्भुज का अन्यतम योगदान है। ऐतिहासिक पात्रों पर लिखे गए उनके नाटक आज भी प्रेरणा देते हैं। उनकी प्रथम नाट्य-कृति 'मेघनाद” को सरसरी दृष्टि से देखने के बाद ही, महान-कथा शिल्पी राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह ने कहा था-"आपको जानते जानते ही लोग जानेंगे, जब जान लेंगे, तो जाने नहीं देंगे।"
यह बातें सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में डा चतुर्भुज की जयंती पर,आयोजित पुस्तक-लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि डा चतुर्भुज एक महान नाटककार ही नहीं, काव्य-कल्पनाओं से समृद्ध एक महान दार्शनिक चिंतक भी थे। उनका जीवन और नाटक पर्यायवाची शब्द की तरह अभिन्न थे। बालपन से मृत्य-पर्यन्त वे इससे कभी पृथक नहीं हो सके। घटनाओं और संघर्षों से भरा उनका जीवन और व्यक्तित्व भी बहु-आयामी था। रेलवे के अधिकारी रहे, अनेक विद्यालयों में शिक्षक रहे, आकाशवाणी की सेवा की, केंद्र-निदेशक के पद से अवकाश लिया, निजी कंपनियों में भी कार्य किए। अनेक कार्य पकड़े अनेक छोड़े। किंतु जिस एक कार्य से कभी पृथक नही हुए, वह था नाट्य-कर्म। सभी तरह की भूमिकाएँ की, नारी-पात्र की भी, नाटक लिखे, निर्देशन किया, प्रस्तुतियाँ की। नाट्य-कर्म से संबद्ध सबकुछ किया।
इस अवसर पर, डा चतुर्भुज के पुत्र और सुप्रसिद्ध नाटककार और उद्घोषक डा अशोक प्रियदर्शी पर केंद्रित पुस्तक 'अनल्प अशोक' का लोकार्पण और पुस्तक के लेखक प्रणय कुमार सिन्हा को 'डा चतुर्भुज स्मृति सम्मान" से अलंकृत किया गया।
डा चतुर्भुज के पुत्र एवं सुप्रसिद्ध नाटककार डा अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि डा चतुर्भुज मेरे पिता ही नहीं मेरे आचार्य भी थे। उन्होंने ही मुझे गढ़ा और संस्कृति-कर्मी और नाटककार बनाया। नाटकों में उनका प्राण बसता था। रंगमंच के लिए वे सभी तरह के वलिदान के लिए तैयार रहते थे। दिन रात की परवाह न करते थे।
वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने डा चतुर्भुज ऐतिहासिक नाटकों के लिए देश भर में जाने जाते थे। उनका व्यक्तित्व भी अनुकरणीय और प्रेरक था। अत्यंत सरल और सहज किंतु दुर्लभ व्यक्तित्व था उनका। पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि यह डा अशोक प्रियदर्शी के विरल साहित्यिक-व्यक्तित्व पर एक अत्यंत मूल्यवान कृति है। पुस्तक का शीर्षक ही आकर्षण उत्पन्न करता है। पाठक जब इसे पढ़ने बैठता है तो समाप्त कर के ही छोड़ता है।
आकाशवाणी के उच्च अधिकारी रहे साहित्यकार डा किशोर सिन्हा, दूरदर्शन के पूर्व कार्यक्रम-प्रमुख डा ओम् प्रकाश जायसवाल, डा ध्रुव कुमार, प्रो उमा सिन्हा, ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।
इस अवसर पर एक भव्य कवि-सम्मेलन का भी आयोजन हुआ, जिसमें वरिष्ठ कवि मधुरेश नारायण, हरेन्द्र सिन्हा, शायरा तलत परवीन, जय प्रकाश पुजारी, कमल किशोर वर्मा 'कमल', सदानन्द प्रसाद, एजाज़ अहमद, डा मीना कुमारी परिहार, राजप्रिया रानी, अर्चना भारती, आनन्द किशोर मिश्र, श्रीकांत व्यास, कुमारी लता प्रासर, पंकज प्रियम, युगेश कुशवाहा आदि कवियों ने अपनी सरस रचनाओं से श्रोताओं को रस-विभोर कर दिया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रो सुशील कुमार झा ने किया।समारोह के पूर्व मकर-संक्रांति पर 'संक्रांति-भोज' का भी आयोजन हुआ, जिसमें कवियों और अतिथियों ने जम कर चुड़ा-दही, तिलकुट और तीखी शब्जी का आनन्द उठाया। सम्मेलन के भवन अभिरक्षक डा नागेश्वर यादव, डा वरुण शर्मा, सुनील कुमार सिन्हा, निर्मला कुमारी, कुमार शीलभद्र, प्राणशुक प्रियदर्शी, रणजीत कुमार, प्रेक्षा प्रियदर्शी, प्रशस्ति प्रियदर्शी, अजय कुमार सिन्हा, पूनम सिंह, पीयूष कांति, वंदना प्रसाद,निर्मला सिन्हा, डा चंद्रशेखर आज़ाद आदि उपस्थित थे।
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