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अयोध्या राम मंदिर संघर्ष - इतिहास पुरुष - के के नायर

अयोध्या राम मंदिर संघर्ष - इतिहास पुरुष - के के नायर

मनोज कुमार मिश्र संकलित।
भगवान राम का भव्य मंदिर अयोध्या में बनकर लगभग तैयार है। इस मंदिर के निर्माण में लगभग 3440 करोड़ रुपयों का योगदान भारत के हिंदुओं ने किया है। भारत सरकार से एक रुपए को भी मदद नहीं ली गई है। पर इस भव्य मंदिर के बनने और दिव्य रूप पाने के क्रम में अगर एक व्यक्ति का उल्लेख न हो तो राम लला के बनवास से उनके मंदिर निवास की ये कहानी अधूरी रह जायेगी। कहा जाता है कि भगवान राम को सिर्फ हिंदी क्षेत्र के लोग पूजते हैं पर यहां हम एक ऐसे व्यक्तित्व को उजागर कर रहे हैं जो सुदूर दक्षिण के केरल प्रदेश के अल्पुझा तहसील के गुटांकाडू गांव से था। इस व्यक्ति का नाम था कंडांगल करुणाकरण नायर। जैसा कि नाम से विदित है आप ब्राह्मण समुदाय से आते थे और अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। 1907 में जन्मे यही वो महात्मना हैं जिनके प्रयास से भगवान राम को उनकी भूमि वापस मिली।
भारत को स्वतंत्रता मिलने से पहले वे शिक्षा दीक्षा के लिए इंग्लैंड गए और मात्र 21 वर्ष की अल्पायु में बैरिस्टर बन गए। तत्पश्चात उन्होंने आईसीएस की परीक्षा पास की और भारत लौट आए। उन्होंने अपने गृह प्रदेश केरल में कुछ दिनों के लिए अपनी सेवाएं दीं और अपनी कर्तव्यनिष्ठा, निडरता सत्य का साथ देने के स्वभाव के कारण जनता के चहेते बन गए। 1945 में उन्होंने उत्तरप्रदेश राज्य में एक जनसेवक के रूप में अपना योगदान दिया। विभिन्न पदों पर काम करते हुए वे फैजाबाद जिले के उपसमाहर्ता और
जिलाधिकारी के रूप में 1 जून 1949 को नियुक्त हुए। 23 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद के मुख्य गुम्बद के ठीक नीचे वाले कमरे में अचानक रामलला की मूर्ति प्रकट हुई। इसके पहले 1934 में भी हिंदुओं की एक विशाल भीड़ ने बाबरी मस्जिद के तीनों गुंबदों को तोड़ दिया था जिसे फैजाबाद के तत्कालीन अंग्रेज जिलाधीश ने मरम्मत करवा दिया था।
मंदिर में राम लला के प्राकट्य का समाचार आग की तरह फैल गया। उस समय के प्रधानमंत्री नेहरू ने राज्य सरकार से इस घटना का उद्भेदन कर इसकी रिपोर्ट भारत सरकार को देने कहा। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने श्री नायर से घटनास्थल पर जाने एवं पूछताछ करने को कहा। श्री नायर ने अपने अधीनस्थ श्री गुरुदत्त सिंह तो घटनास्थल पर भेजा और उन्हे वहां की स्थिति का उद्भेदन कर अपनी विवेचना रिपोर्ट देने कहा। श्री गुरुदत्त घटना स्थल पर गए और अपनी विस्तृत रिपोर्ट जिलाधिकारी के समक्ष पेश की। रिपोर्ट में लिखा गया था कि हिंदू इस जगह को भगवान श्री राम के जन्मस्थल के रूप में पूजते हैं लेकिन इलाके के मुसलमान वहां यह कहकर कि यहां एक मस्जिद थी, उपद्रव करते रहते हैं। श्री सिंह की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि यह एक हिंदू मंदिर है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस जगह पर एक विशाल मंदिर का निर्माण होना चाहिए इसके लिए सरकार को जमीन आबंटित करनी चाहिए और मुसलमानों को इस पूरे क्षेत्र में जाने से रोक देना चाहिए।
श्री सिंह की इस रिपोर्ट के आधार पर जिलाधिकारी श्री नायर ने मुस्लिमों के जन्मस्थल मंदिर से 500 मीटर की दूरी तक आने पर रोक लगा दी। मजे की बात यह है कि यह रोक आज भी कायम है और न तो सरकार न ही कोई अदालत इस रोक को हटा सकी है।
जब यह बात नेहरू को पता लगी तो वे गुस्से से आगबबूला हो गए। राज्य सरकार को उन्होंने तुरंत हिंदुओं को उस जगह से हटाने और राम लला की मूर्ति हटवाने को कहा। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने नायर जी को आदेश दिया कि ऐसा ही करो। लेकिन नायर जी ने इस शासनादेश को मानने से इंकार कर दिया। यही नहीं उन्होंने एक और आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि राम लला की दैनिक पूजा हो और इस पूजा पर होने वाल खर्च एवं पुजारी की तनख्वाह का खर्च भी सरकार उठाए। नेहरू इस आदेश को जानकर स्तब्ध रह गए उन्होंने नायर को नौकरी से तुरंत हटाने का आदेश जारी करवा दिया। बर्खास्त होने के बाद श्री नायर इलाहाबाद की अदालत में गए और अपना मुकदमा खुद ही लड़ा। शासन का आदेश अदालत ने निरस्त कर दिया और कहा कि श्री नायर को उनके न केवल बहाल किया जाय वरन उसी जगह पर काम करने दिया जाय जहां वो पहले कर रहे थे। न्यायपालिका का यह आदेश नेहरू के गाल पर जोरदार तमाचे के समान था। अयोध्या की जनता भी पूरी तरह से कांग्रेस के खिलाफ हो गई और उन्होंने श्री के के नायर को चुनाव लड़ने को कहा। पर श्री नायर ने नियमों का हवाला देते हुए चुनाव लड़ते से मना कर दिया। तब नागरिकों की तरफ से उनकी पत्नी श्रीमती शकुंतला नायर को चुनाव में उतारा गया। उत्तर प्रदेश के प्रथम विधानसभा चुनाव में शकुंतला नायर जी ने चुनाव लड़ा और कांग्रेस की इस प्रचंड लहर में कांग्रेस के उम्मीदवार को हजारों वोटो से परास्त कर विजयी हुई। 1952 में शकुंतला नायर जनसंघ में शामिल हो गईं और जनसंघ को अयोध्या एवम आसपास में जनसंघ को एक संस्था के रूप में मजबूत करने लगीं।
राम लला के मुद्दे पर लगातार मिलती हुई हार से बौखलाए नेहरू ने श्री के के नायर पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया। अंततोगत्वा श्री के के नायर ने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत करने लगे।
जब 1962 के लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो लोगों ने श्री के के नायर और उनकी पत्नी पत्नी को चुनाव में उतार दिया, वे चाहते थे कि नायर नेहरू के सामने अयोध्या और राम लला के बारे में बोलें। लोगो के आशीर्वाद से नायर जी बहराइच से और शकुंतला जी कैसरगंज से विजयी हुईं। यह एक ऐतिहासिक पल था। लोगों की नायर जी में इतनी श्रद्धा थी कि उनका ड्राइवर भी विधानसभा के चुनाव में फैसलाबाद से जीत गया।
बाद में जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया और नायर पति पत्नी को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया। लेकिन इस गिरफ्तारी ने जो जनांदोलन पैदा किया उससे डरकर सरकार को दोनो को रिहा करना पड़ा। दोनों वापस अयोध्या लौट आए और जनता के काम में लग गए। तब से एक दो बार को छोड़कर बीजेपी हमेशा अयोध्या से जीतती रही है।
नायर जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद अयोध्या केस की पैरवी की और खुद के ही पारित आदेशों को बनवाए रखा। आज भी हिंदू विरोधी इन आदेशों को दरकिनार नहीं कर पाए हैं। इन्ही आदेशों के बल पर अयोध्या में पूजा और दर्शन आज भी हो रहा है। सन 1976 में श्री नायर ने अपने गांव वापस जाना चाहा लेकिन अयोध्या की जनता इसके लिए तैयार न थी लेकिन अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर आखिर वे अपने गांव लौट गए। 7 सितंबर 1977 को उन्होंने अपने नश्वर शरीर का परित्याग किया और हरि चरणों में विश्राम पाया। अयोध्या की जनता उनके निधन से बहुत दुखी हुई। तब अयोध्या से एक नागरिक समूह केरल गया और उनकी अस्थियों को लेकर आया। इस अस्थि कलश को सजे हुए घोड़ागाड़ी में शहर में घुमाया गया और उसी स्थान पर सरयू में प्रवाहित किया गया जहां भगवान राम दैनिक स्नान किया करते थे और सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे।
यह सिर्फ स्व. के के नायर जी का ही प्रताप, बुद्धिमता और मेहनत थी जिससे हम आज 500 वर्ष पुराना राम मंदिर के स्वप्न को साकार कर पा रहे हैं। अयोध्या में आज भी वे देवता के रूप में याद किए जाते हैं। श्री नायर के चरणों में श्रद्धा सुमन के साथ 🙏🙏- 
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