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आग और पानी

आग और पानी

आग की लपटें चमक रही थीं,
और पानी की लहरें उठ रही थीं।
क्षितिज में इक अनोखा नजारा था,
जो देखकर मन खुश हो गया था।

आग और पानी दोनों एक साथ,
एक अनोखी सुंदरता बना रहे थे।
जैसे कि तुम और मैं एक साथ,
एक अनोखी दुनिया बना रहे हैं।

आज आग - पानी एक साथ आसमान पर,
दोनों अपने-अपने जलवे बिखेरने लगे थे।
लगता है! तेरे आने का इशारा कर रहे थे।
मेरे इस दिल को तुम्हारी याद दिला रहे थे।

लपटों और बूंदों का शीतल स्पर्श,
एक अद्भुत विलक्षण दृश्य था।
जैसे आग और पानी का हो प्रेम,
इनका संगम एक नया रूप ले रहा हो।

आज तो ऐसा लग रहा था,
मानों अरमान वाष्प बन उड़ रहे हों।
जैसे दुनिया में सिर्फ तुम ही हो,
और मैं तुम्हारे आने का इंतज़ार कर रहा हूँ।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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