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अमृत और अमरता

अमृत और अमरता

अमृत की तलाश में भटका करता हूं।
 अमरता का जाल भी पाना चाहता हूं।
यह कैसी बहती धारा है अमृत की।
जिसमें हर कोई डूबना चाहता है।
और यह कैसी जाल है अमरता की
जिसमें हर कोई उलझना चाहता है।
चाहता हूं छोड़ दूं अमृत की तलाश
चाहता हूं काट डालूं अमरता का जाल
जिसके लिए बेचैन मारा फिरता हूं।
छोड़ नहीं पाता अमृत की तलाश
न काट पाता हूं अमरता का वह जाल
जिसमें सदैव उलझना चाहता हूं।
स्वार्थी हूं सदैव यही कहोगे तुम
इसलिए न छोड़ पाया अमृत का मोह
ओर न काट पाया अमरता का जाल ।
मेरे अंतर्मन को कभी न समझोगे तुम
क्यों नहीं छोड़ा अमृत की तलाश
क्यों नहीं काटा अमरता का जाल
सुनों बताता हूं एक राज जो दिल में है
भवसागर में नहाते रहना चाहता हूं।अमरता के भवजाल में अपने आपको और तुम्हे भी उलझाए रखना चाहता हूं
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