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उफ यह ठंड

उफ यह ठंड

हास्य कविता
उफ यह ठंड
अतिथि के आने जाने की
तिथि तय नहीं होती
हे शीतलहर तू भी तो
इनसे कुछ कम नहीं
पानी को देखू तो
माता से शक्ति मांगू
नहाने जाऊ तो
हर हर महादेव के
नारे लगाऊं
डीएम भी देखो कितना गद्दार
विद्यालयों में छुटिया कर देता बार बार
माताएं भी हो जाती परेशान
घर पर बच्चे करे हुरदंग
चाय कॉफी की हरदम करे
आजमाइश उनके श्रीमान
हद्द तो तब हो आती
जब काम वाली बाई छुट्टी पर जाति
जूठे बर्तन और पोछे की बाल्टी
देख हड्डियां हिल जाती
सूर्य देवता बदलो में छिप जाते
दर्शन पाने को गुहार लगाओ
शर्माते हुए तब दिख पाते
बस!अब बहुत हो गया
हाथ जोडू, विनती करूं
सर्दी अब तू चली जा।ऋचा श्रावणी
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