लोग कहते हैं कि
लोग कहते हैं कि हवा ,आग को सुलगती है ।
यहां तो हवा ठंड को ,
सुलगा रही है ।
ठिठुरन भरी सर्दी में ,
लोग ऐसे हीं बेहाल हैं ।
उपर से पछेया हवा ,
दिखा रही कमाल है ।
हाड़ कंपा रही सर्दी में ,
पछेया हवा चल रही है ।
शरीर सुन्न हो रहा है ,
लगता है हड्डियां गल रही हैं।
सूरज से थोड़ी आशा थी ,
पर वे तो पहले ही ,
मैदान छोड़ चुके हैं ।
धूंध और कुहासे में घिर ,
सबसे मुंह मोड़ चुके हैं ।
धुप की आशा में लोग ,
घर के छतों पर जाते हैं ।
सूरज को भी पछेया हवा ,
के आगे बेबस देख ,
लौट कर पुनः वे ,
रजाई और कंबल तले आते हैं ।
ऐ ठंडी , ढा लो सितम ,
जितना तुम्हें ढाना है ।
पर याद रखना सबक ,
जैसे सब जाते हैं, वैसे ही
एक दिन तुमको भी जाना है । जय प्रकाश कुंअर
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