हिमपात या चाँदनी की चादर
चाँदनी की चादर बिछी थीरात भर, कल चंदा ने
मानो जाते-जाते उसको
भूल गया था वह समेटना
चांदनी की चादर पर
प्रकृति भी सोई हुई है
और ठंड से सिहर रही है
नई ऋतु का स्वागत करती हुई
चांदनी की चादर पर
बर्फ की बूंदें गिर रही हैं
और धरती को ढक रही हैं
एक नई चादर ओढ़ा रही हैं
रूई-से हिम के फाहों में
आच्छादित घर-आँगन है
कड़ी ठण्ढ में बर्फ ओढ़ कर
सिहर रहा हर वन-उपवन है
चाँदनी की चादर में लिपटी
धरती आज शांत और सुंदर है
यह चादर है जैसे एक सपना
जिसमें खो जाना चाहता है हर कोई
पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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