तेरी याद आती है
चले गए वर्ष 2023 ,तेरी याद न भूलाती है ।
छोड़ गया छाप हमपर ,
हमें तेरी याद आती है ।।
जाने को गए अभी अभी ,
अभी तीन रोज भए हैं ।
लगता क्यों ऐसा मुझको ,
जैसे तीन वर्ष बीत गए हैं ।।
आया नववर्ष 2024 है ,
किंतु इसमें बचकानी है ।
हॅंसना खेलना और कूदना ,
करता अभी ये मनमानी है ।।
नहीं उतरता कसौटी पे खड़ा ,
न गंभीरता ही यह पुरानी है ।
न दिखे कोई हॅंसते खेलते ,
न खुशी लिए कोई प्राणी है ।।
खटक रही है तुम्हारी कमी ,
मन में हो रहा ये पछतावा है ।
जिसने जैसा है कुछ बोया ,
वैसा ही फल तो वह पावा है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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