राजनीति जीत गई, हार गया धर्म।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
रूपयों की मार जहाँ,
शकुनि-शकटार जहाँ,
सत्ता की नर्त्तकी हाट में चुनाव की ,
झूठे हैं दाँव और खारिज है शर्म।
बहुमत-गर्वित सत्ता,
हिले नहीं इक पत्ता,
धर्माचार्यों की हैं उड़ा रहे धूल,
भण्डों और भाटों का बाजार गर्म।
चकितचित्त राम लला,
देख रहे कुतुक-कला,
कलि के प्रताप की पताकाएँ उड़ रहीं ,
शकुनि-शकटार जहाँ,
सत्ता की नर्त्तकी हाट में चुनाव की ,
झूठे हैं दाँव और खारिज है शर्म।
बहुमत-गर्वित सत्ता,
हिले नहीं इक पत्ता,
धर्माचार्यों की हैं उड़ा रहे धूल,
भण्डों और भाटों का बाजार गर्म।
चकितचित्त राम लला,
देख रहे कुतुक-कला,
कलि के प्रताप की पताकाएँ उड़ रहीं ,
पवनपुत्र हतस्तब्ध देख -देख कर्म।
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