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युग-प्रवर्त्तक साहित्यकार थे महाकवि जयशंकर प्रसाद, युग-बोध के कवि थे 'द्विज' और 'मुक्त', विरले लोग बलभद्र कल्याण होते हैं :-डा अनिल सुलभ

युग-प्रवर्त्तक साहित्यकार थे महाकवि जयशंकर प्रसाद, युग-बोध के कवि थे 'द्विज' और 'मुक्त', विरले लोग बलभद्र कल्याण होते हैं :-डा अनिल सुलभ

  • जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई कवि-गोष्ठी ।

पटना, ३० जनवरी। महाकवि जयशंकर प्रसाद एक युग-प्रवर्त्तक साहित्यकार थे, जिन्होंने एक साथ, कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक लेखन के क्षेत्र में हिन्दी साहित्य को गौरवान्वित करने वाली, विश्व-विश्रुत महाकाव्य 'कामायनी' समेत अनेक अनमोल कृतियाँ दी। उन्हें महाप्राण निराला, सुमित्रा नंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी काव्य में छायावाद-काल का प्रमुख स्तम्भ माना जाता है। साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे पं जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज' और पं प्रफुल्ल चंद्र ओझा 'मुक्त' काव्य-साहित्य को ऊर्जा देनेवाले युगबोध के कवि थे। 'साहित्य-सारथी' की लोक-उपाधि से विभूषित कवि बलभद्र कल्याण जैसे लोग विरले होते हैं।
यह बातें, मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित, जयंती समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि द्विज जी का व्यक्तित्व किसी महात्मा के समान था। उनकी विद्वता, सरलता और विनम्रता, उनके व्यक्तित्व में लक्षित होती थी। उसी प्रकार 'मुक्त' जी का स्थान बिहार के गौरव-पुरुषों में है। मृदुभावों के कवि श्री मुक्त अपने उपनाम की भाँति 'मुक्त' भाव से लिखे। उन्हें जो ठीक लगा, उसे निर्भय होकर लिखा। उनके द्वारा,बाल्मीकि कृत रामायण के हिन्दी अनुवाद को विशेष प्रसिद्धि मिली।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि हिन्दी काव्य के ये चारों नक्षत्र साहित्य के आकाश पर आज तक चमक रहे हैं। उन्होंने जयशंकर प्रसाद के एक चर्चित गीत "मैं हृदय की बात रे मन" का गायन कर कवि को तर्पण दिया।
मुक्त जी के पुत्र यशोवर्द्धन झा ने कहा कि मुक्त जी बड़े अच्छे कवि तो थे ही बड़े अच्छे वक्ता भी थे। उनकी विशेषता यह थी कि वे प्रेमानुरागी थे।
कल्याण जी के जमाता आशीष सिन्हा, पुत्री सुजाता वर्मा, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी डा बच्चा ठाकुर, डा अशोक प्रियदर्शी, कुमार अनुपम, ई अवध किशोर सिंह आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र द्वारा वाणी-वंदना से हुआ। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, जय प्रकाश पुजारी, डा सुधा सिन्हा, डा विद्या चौधरी, सदानन्द प्रसाद, ऋचा वर्मा, डा सतीश कुमार, डा रमाकान्त पाण्डेय, डा प्रतिभा रानी, चितरंजन भारती,डा मीना कुमारी परिहार, वंदना सहाय, डा सुषमा कुमारी, ई अशोक कुमार,रीता कुमारी, सिद्धेश्वर, डा पंकज कुमार सिंह, अरविन्द अकेला, नरेंद्र कुमार, राज प्रिया रानी आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी काव्य-रचनाओं से स्मृति-तर्पण किया।
मंच का संचालन कवि ब्रह्मानंद पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। समारोह में सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, बाँके बिहारी साव, डा रणजीत कुमार, पुरुषोत्तम मिश्र, नीरव समदर्शी, डा चंद्रशेखर आज़ाद, सुमन कुमार वर्मा, प्रो अनिल कुमार, शेखर नलिन, अल्पना कुमारी, भरत कुमार, अमन वर्मा नन्दन कुमार मीत आदि बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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