बचपन के ख़्वाब, पचपन में याद आते हैं,
छीन कर खाना बाँट कर खाना, भाते हैं।वो कागज की कश्तियाँ, चलती थी कभी,
बचपन के वो खेल, पचपन में सुहाते हैं।
लड़ना झगड़ना कुट्टी अब्बा, खाना खिलाना,
बचपन के खेल मुझे, उसकी याद दिलाते हैं।
कल मिली बचपन की वो सखी बाज़ार में,
खेलते थे गुड्डा गुड़िया, चित्र नज़र आते हैं।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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