तुम दुलहन नयी नवेली हो ,
अभी अनबुझ एक पहेली हो ।कल तक तुम एक परिंदा थी ,
जो खुले गगन में उड़ती थी ।
अब एक पिंजरे में बंद हुई ,
अब लाज बनी इस आंगन की ।
यहां सारे चेहरे नये नये ,
तेरे अपने पिछे छुट गये ।
अब इनसे ताल मिलाना है ,
क्योंकि जीवन यहां बिताना है ।
अब ये हीं तेरे अपने हैं ,
यह भाव जगाना है मन में ।
इनको जो अपना बना लिया ,
सब सुख पावोगी जीवन में ।
लड़की का दो घर होता है ,
हर लड़की की यही कहानी है ।
एक छुटता है एक होता है ,
यह समझ उन्हें अपनानी है ।
जो संस्कार तुमने पाया है ,
अब वहीं काम तेरे आएगा ।
तुम सबकी चहेती बन जाओगी ,
नव जीवन सुखमय हो जाएगा । जय प्रकाश कुंअर
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