चंग चढ़ा है आजकल,सर्दी का उल्लास
बंद आंख सूरज किए,सुबह रही झकझोर।रात दिवस हैं एक से, कुहरा है घनघोर।।
सूरज छुपकर सो गया,ले बादल कीओट।
शून्य दृश्यता हो गई,है कुहरे की चोट।।
सर्दी का 'हण्टर' चला, लगी कांपने धूप।
गर्मी निकली नीर की ,छुपके बैठा कूप।।
तोड़े मानक हैं सभी , सर्दी ने इस बार।
विटप पर्ण हैं रो रहे ,टप-टप बहती धार।।
दबे पांव आती हवा, जड़ देती कंटाप।
आंख कान मुॅह नाक से,निकल रही है भाप।।
गलन बढ़ी सिहरन बढ़ी, ठिठुर रहे हैं अंग।
सड़क गली सुनसान है,लखि सर्दी के ढंग।।
सर-सर चलती है हवा,हाथ पांव हैं सुन्न।
दिवस देह पर सूर्य की,किरणें होती छुन्न।।
सिट्टी-पिट्टी गुम हुई, सूरज बैठा मौन।
दांत किटकिटी कर रहे,आग जलाए कौन।।
सर्दी करे ना दोस्ती, करे वार पे वार।
चूक गए यदि भूल से,रखती नहीं उधार।।
हाड़ कपाए शीत है, ह्विस्की लिए गिलास।
चंग चढ़ा है आज-कल,सर्दी का उल्लास।।
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~जयराम जय
'पर्णिका' बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्यणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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