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हाकिम को बेगाना समझे- लानत है,

देशद्रोही अलगाववादी विचारो वालो को उनकी ही गजल के शब्दो मे कुछ लिखने का प्रयास----तुकबन्दी

हाकिम को बेगाना समझे- लानत है,

दुश्मन को तू अपना समझे, लानत है।


बोल रहा तू पाक की भाषा- लानत है,
मुल्क तोडते दुश्मन की भाषा, लानत है।


हमने भी चिट्ठी लिक्खी है हाकिम को,
जो बच्चो को बहकाते उन पर लानत है।


जिसने दीवारों पर लिक्खा, मुल्क तोडना,
वो जिन्दा अब तक घूम रहे, लानत है।


गुलशन मे भी काँटे बोते, फूल तोड कर,
नागफनी की खेती करते, लानत है।


मुफ्त के टूकडो पर पलते, आग लगाते,
सम्प्रदायिकता का जहर घोलते, लानत है।


मानवता को हमने माना सदा सनातन,
दानव अब भी खुले घूमते, लानत है।


बच न पायें अलगाववादी इस मुल्क मे,
सी सी टी वी से पहचानो, वर्ना लानत है।


सेना पर भी पत्थर मारें, आग लगाने वाले,
देशद्रोही जिन्दा घूमें, हाकिम पर लानत है।


पी एम की सुरक्षा में सेंध, बस सत्ता खातिर,
देशद्रोही गद्दारों पर, जनता की लानत है।

अ कीर्ति वर्द्धन
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