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जहां पुष्प है , वहां पराग है

जहां पुष्प है , वहां पराग है ,

जहां धुआं है , वहां आग है ।
पुष्प की सुंदरता में ,
पराग दिखता नहीं है ।
धुआं के गुब्बारे में ,
आग दिखता नहीं है ।
धुआं के शांत होते ही ,
आग भड़क उठती है ।
पुष्प के खिलते ही ,
पराग महक उठती है ।
कोई धुआं देखकर ही,
फिर आग खोजता है ।
कोई पुष्प देखकर ही ,
फिर पराग खोजता है ।
कोई आग ढूंढता है ,
कुछ पकाने के लिए ।
कोई आग ढूंढता है ,
किसी को जलाने के लिए।
कोई फूल देव पर चढ़ाता है ,
कोई फूल जुड़े में लगाता है ।
एक भ्रमर है जो ,
उड़कर फुलवारी में जाता है।
वह फुल पर मंड़रा कर ,
फुल पर बैठ कर ,
पुष्प का पराग लेता है ।
और सबको मधु रूपी ,
अमृत पान कराता है ।
छुपीं हुई गुणवत्ता को ,
सब कोई समझ नहीं पाता है ।
जिसको जिसकी परख है ,
वह उसी में रम जाता है ।
धूप की लहरों में जल है ,
मृग समझ नहीं पाता है ।
जल की आशा में ,
वह दौड़ कर मर जाता है ।
आग , पराग और मृगतृष्णा ,
का राज वहीं समझ पाता है ।
ज्ञान इसका उसे कराने वाला ,
एक मात्र केवल विधाता है । जय प्रकाश कुंअर
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