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रामराज्य

रामराज्य

श्री मार्कण्डेय शारदेय

श्रीरामचन्द्र का राज्यारोहण हो गया।अब सम्पूर्ण शासन-तन्त्र उनके अधीन था। वह पिता महाराज दशरथ का शासन देख,सुन,सीख चुके थे।उनके संरक्षण में राज-काज करने का उपयुक्त अवसर तो नहीं मिला था।परन्तु वह राजधर्म से पूर्ण परिचित थे।वनवास ने भी बहुत कुछ सिखा दिया था।
अतिथियों की विदाई के तुरन्त बाद उन्होंने बैठक बुलाई,जिनमें आठों मन्त्रियों के साथ आठों राष्ट्रगोप(धार्मिक सलाहकार),सेनापति,दुर्गपति, कोशपाल,पौर एवं ग्रामणी मुख्य थे।जब सभी आ गए तो श्रीराम ने अपनी योजना पर प्रकाश डालना शुरू किया।उन्होंने कहा,आपलोगों ने जिस आसन पर मुझे बैठाया है,उसे मेरे पूर्वज विभूषित करते आए हैं।मनु महाराज से लेकर मेरे पुण्यश्लोक पिताजी तक राजधर्म के पालन में रत्तीभर भी नरमी नहीं बरती गई।मेरा सौभाग्य है कि जो-जो शासन-सहयोगी पिताजी के थे,वे ही मेरे साथ भी हैं।मैं तो आपलोगों के पुत्र-तुल्य हूँ,पर राजा हूँ।इस नाते स्नेह देना और राजाज्ञा का पालन दोनों आप सबसे अपेक्षित हैं।आप सभी अपने-अपने वैशिष्ट्य से इस राष्ट्र के अलंकार हैं।मुझे परीक्षा लेने की जरूरत भी नहीं,क्योंकि पूर्वपरीक्षित हैं तभी यहाँ अनवरत हैं।
शास्त्रों में राजा के लिए जो पंचयज्ञ बताए गए हैं,वे ही मेरे शासनधर्म के आधार रहेंगे-दुष्टों को दण्ड,सज्जन का सम्मान,न्यायपूर्वक करग्रहण,सबके प्रति समान व्यवहार एवं सर्वोपरि राष्ट्रहित।
प्रजारक्षण ही राजा का प्रथम धर्म है।इसलिए भीतरी और बाहरी दुश्मनों से किसी के जान-माल का नुकसान न हो,इसकी हमारी प्राथमिकता रहेगी।चोर-डाकू पैदा ही न हों,अगर कहीं कुछ भी बचे रह गए हों तो उन्हें जल्द से जल्द ऐसी सजा दी जाए कि देखनेवाले का भी कलेजा दहल उठे।पड़ोसी राष्ट्रों से सीमा ऐसी सुरक्षित हो कि बिना इजाजत एक भी विदेशी एक कदम भी हमारी सीमा में पैर रखने से पहले काँप उठे।हाँ,पथभ्रष्टों को सन्मार्ग पर लाना ही दण्ड का मुख्य उद्देश्य है,इसलिए निर्दोष व्यक्ति उचित जाँच-पड़ताल के अभाव में दण्डित न हो जाए,सदा ध्यान रखना है।न्याय ऐसा हो,जिसके मूल में समदर्शिता हो,निष्पक्षता हो,अपना-पराया का भाव न हो।इसके लिए राजा से लेकर निचले स्तर के कर्मचारियों तक को निर्लोभ तथा निःस्वार्थ होने पर ही शासन सुव्यवस्थित हो सकता है और जनता भी सत्पथ पर रह सकती है।
मेरे राज्य में किसी को किसी से किसी प्रकार का भय न हो,यह आवश्यक है।हाँ,जब राजा निरंकुश हो जाए तो राष्ट्र कमजोर पड़ने लगता है,सारे विभाग ढीले पड़ने लगते हैं,अतः यदि मुझसे कोई गलती हो रही हो तो निःसंकोच दिशानिर्देश करना होगा।
कोई बेरोजगार,बेकार न बैठे।शिक्षा की समुचित व्यवस्था हो।राष्ट्र के सभी बच्चों को समुचित शिक्षा उपलब्ध हो।यदि गुरुकुल कम पड़ रहे हों तो अधिक से अधिक गुरुकुलों की स्थापना हो।जहाँ भी कोई योग्यतम आचार्य,उपाध्याय हों,उन्हें अपने यहाँ संरक्षण दिया जाए।पूज्य गुरुदेव वसिष्ठजी महान पारखी हैं,अतः इनसे राय अवश्य ली जाए।
बुद्धिजीवी,बलजीवी,धनजीवी एवं श्रमजीवी चारों वर्गों का सदुपयोग राष्ट्रहित एवं लोकहित में हो।वे दबाव से नहीं,स्वेच्छा,सद्भावना से लोककल्याण में समर्पित हों।उन्हें अपने कार्य का समुचित सम्मान तथा वेतन मिलना चाहिए,तभी अपनी योग्यता का भरपूर प्रयोग कर पाएँगे।जो वंशानुगत कार्य में लीन हों,उन्हें उधर पूरा-पूरा बढ़ावा मिले।हाँ,कहीं और प्रशिक्षण लेना चाहें तो उन्हें सहयोग देने में कमी नहीं हो।इसके लिए हरसाल लोगों से मिलकर पता करना होगा कि किस परिवार का कौन सदस्य क्या करता है?पारिवारिक आमदनी का जरिया क्या है?शासन से उन्हें क्या अपेक्षा है?इससे यह भी पता चल जाएगा कि कोई नाजायज आमदनी तो नहीं करता,कोई गलत कामों से धनार्जन व अपव्यय तो नहीं करता?राजाज्ञा का सही-सही पालन हो रहा है कि नहीं?सदा सचेत गुप्तचर-विभाग सीमापार से गाँव-गाँव तक की सारी गतिविधियों को सूचित करता रहे।सही सूचना नहीं पहुँचने से राष्ट्र की बड़ी क्षति हो सकती है।इस विभाग के निरीक्षण में सारे अधिकारी भी रहें,ताकि कोई पद-प्रभाव का दुरुपयोग न करे।
सेना ही राजबल होती है,अतः सैनिकों एवं उनके आश्रितों को किसी तरह की कठिनाई का सामना नहीं करना प़ड़े।सैन्यविभाग के सारे अंगों के पास भरपूर युद्धसामग्री एवं रसद रहे।


नारीसम्मान,नारायणी-पूजा है,अतः अविवाहित बालिकाएँ पिता,भाई आदि के संरक्षण में तो विवाहिताएँ पति-पुत्रों के संरक्षण में रहें।किसी कमजोर संरक्षक के कारण कोई बलवान किसी की बहन-बेटी पर कुदृष्टि न रखे,जबरदस्ती न कर सके।जो करे तो ऐसे दुःसाहसी को उद्वेगजनक दण्डों से नाक,कान आदि कटवाकर देश से निकाल दिया जाए।हाँ,यदि पुरुष-स्त्री में आपसी सहमति हो तो कम दोषपूर्ण और स्त्री के विरुद्ध होने पर व्यक्ति को वधदण्ड तक दिया जाए। भौगोलिकता,क्षेत्रीयता व पारिवारिकता के कारण कुछ परम्पराएँ भिन्न हो सकती हैं,पर आचरण की परिधि में तो पशुत्व व बहसीपन कतई नहीं आना ही चाहिए।
स्त्रीसंग्रहण का तात्पर्य परस्त्री सम्बन्ध है।बल से धोखे से व कामपिपासा से किया गया ऐसा कुकर्म पापमूल है।वस्तुतः स्त्री की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती अपनी प्यास बुझाना ही मुख्यतः बलात्कार है।परन्तु मानसिक रूप से अस्वस्थ किसी महिला के साथ भी ऐसा करना इसी श्रेणी में आता है।बहला-फुसलाकर तथा नशीला पदार्थ खिला-पिलाकर व डरा-धमकाकर किया गया सम्भोग दूसरी श्रेणी का इसलिए है कि विवशता के कारण वह स्त्री विशेष प्रतिकार नहीं कर पाती है।तीसरे प्रकार में इशारे व हाव-भाव से,दूसरों से बुलवाकर,प्रलोभन देकर संलिप्त होना है।इसमें कुछ हद तक लाचारी से ही सही स्त्री भी अपनी भागीदारी निभाती है।परन्तु नियम-विरुद्ध सम्बन्ध होने से यह भी कुकृत्य है,पापकर्म है,अपराध है।हमारे राज्य में अष्टविध विवाहों में ब्राह्म विवाह ही मुख्य रहे।हाँ,अन्य भी चलें,पर राक्षस एवं पैशाच विवाह अमान्य ही रहें।
राजा तभी राज कर सकता है,जब खजाना अन्न-धन से भरा पड़ा हो।हमारी कृषि वर्षा पर अधिक आश्रित है।फिर भी सिंचाई के जो कृत्रिम साधन नहर,आहर,पोखर आदि हैं।इनके संवर्द्धन-संरक्षण पर अधिकाधिक ध्यान दिया जाए।नदियों को स्वच्छ रखा जाए।समय पर समुचित वर्षा हो,अकाल-दुकाल न हों,इसके लिए हमारे ग्रामणी,सामन्त व राजगण योग्य ऋत्विजों के निर्देशन में विधिवत् देवयजन भी करते रहें।कृषियोग्य भूमि कभी परती न रहे,कोई कृषक असहाय या लापरवाह न हो।उनकी समस्या का शीघ्रता से समाधन हो।पशुपालन पर भी अधिकाधिक ध्यान रहे।कोई निर्धन या अधन न हो।कोई स्वस्थ व्यक्ति बिना काम किए कुछ पाने का लोभ न करे।यातायात के साधन राजपथ,जनपथ,वीथी आदि का समुचित प्रबन्ध हो।सड़कों के किनारे भरपूर पेड़ लगे हों।जगह-जगह कुएँ,तालाब व अन्य जलाशयों का प्रबन्ध हो,ताकि राहगीर व पशु-पक्षी प्यासे न रहें।छाया में विश्राम कर सकें।वनमार्ग में लुटेरे व्यापारियों को सहजतया लूट ले सकते हैं,अतः वहाँ सुरक्षार्थ वनसैनिकों की कमी न रहे।जगह-जगह शिविरों,आरक्षिस्थान हों,ताकि भय-आतंक से सब मुक्त रहें,निर्विघ्न कारोबार कर सकें। वन्य जीवों के संरक्षण के साथ ही वनस्पतियों की भी सुरक्षा रहे।
कलाएँ राष्ट्र की सुगन्ध होती हैं,अतः कला का चाहे जो रूप हो वह समादर-संरक्षण का हकदार है।इसलिए किसी कलाकार को किसी तरह की परेशानी न हो,पूरा-पूरा ध्यान दिया जाए।चिकित्सा शास्त्र को आगे बढ़ाने में व अन्य अनुसन्धानों में जो समर्पित हैं,उन्हें राजकीय संरक्षण विशेष प्राप्त हों।
हाँ,राजकर्मियों,सैनिकों,मार्गनिर्माण,जरूरतमन्दों का राजकीय सहयोग एवं राजपरिवार का जीवन-यापन-जैसे कई और खर्च राजकोश पर ही निर्भर हैं।कर,शुल्क एवं आर्थिक दण्ड ये ही राजा की आय के मुख्य स्रोत हैं।अतः संग्रहण पर पूरा ध्यान आवश्यक है।एक तरह से ये ही राजा के राष्ट्ररक्षण के वेतन भी हैं।फिर भी हमारा उद्देश्य यह कतई नहीं कि शोषणपूर्ण धनसंग्रह हो।कोशसंवर्द्धन से बड़ा उद्देश्य है प्रजापोषण।जैसे सूर्य धरातल का जल अपने करों से अल्पशः ग्रहण करता जाता है और बरसात में भरपूर समर्पित कर दिया करता है,वैसी ही हमारी करप्रणाली रहे।किसी को कर देने में परेशानी नहीं हो।नहीं तो राजा और डाकू में अन्तर क्या रहेगा?
आप सबसे निवेदन है कि सुख-शान्ति का साम्राज्य कायम रखने में अयोध्याराज्य का पूर्ण मनोयोग से सहयोग दें,ताकि वैदिक वाक्य की यथार्थता सिद्ध हो-
ऊँ द्यौः शान्तिः अन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिः आपः शान्तिः ओषधयः शान्तिः वनस्पतयः विश्वेदेवाः शान्तिः ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः। शान्तिः एव शान्तिः सा मा शान्तिः एधि।।
यानी सर्वत्र शान्ति ही शान्ति रहे।
लेखक श्री मार्कण्डेय शारदेय की औपन्यासिक कृति रामकहानी का अंश)
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