शिव योग में 8 मार्च को मनेगी महाशिवरात्रि

शिव योग में 8 मार्च को मनेगी महाशिवरात्रि

चिरकाल में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव एवं मां पार्वती परिणय सूत्र में बंधे थे। अतः हर वर्ष फाल्गुन माह की चतुर्दर्शी तिथि पर मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से विवाहितों को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं अविवाहितों की शीघ्र शादी के योग बनने लगते हैं।
हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। तदनुसार, साल 2024 में 8 मार्च को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी। इस दिन देवों के देव महादेव और जगत जननी आदिशक्ति मां पार्वती की पूजा की अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। शास्त्रों में निहित है की चिरकाल में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव एवं मां पार्वती परिणय सूत्र में बंधे थे। आसान शब्दों में कहें तो इस तिथि पर महादेव एवं मां पार्वती का विवाह हुआ था। अतः हर वर्ष फाल्गुन माह की चतुर्दर्शी तिथि पर मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से विवाहितों को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं, अविवाहितों की शीघ्र शादी के योग बनने लगते हैं। साथ ही घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है। अत: साधक श्रद्धाभाव से महादेव और माता पार्वती पूजा अर्चना करते हैं। आइए, महाशिवरात्रि की तिथि, शुभ-मुहूर्त एवं पूजा विधि जानते हैं-

महाशिवरात्रि क्यों मनाते है ?

‘महाशिवरात्रि’ के काल में भगवान शिव रात्रि का एक प्रहर विश्राम करते हैं । महाशिवरात्रि दक्षिण भारत एवं महाराष्ट्र में शक संवत् कालगणनानुसार माघ कृष्ण चतुर्दशी तथा उत्तर भारत में विक्रम संवत् कालगणनानुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाई जाती है । इस वर्ष महाशिवरात्रि 8 मार्च 2024 को है ।
शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 8 मार्च को संध्याकाल 09 बजकर 57 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 09 मार्च को संध्याकाल 06 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी। प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। अतः 8 मार्च को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।
पूजा का समय

महाशिवरात्रि के दिन पूजा का समय संध्याकाल 06 बजकर 25 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक है। इस समय भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।

पूजा विधि

महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म बेला में उठें और भगवान शिव और माता पार्वती को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें और श्वेत रंग का नवीन वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात, सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। अब पूजा गृह में एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें और कच्चे दूध या गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करें।

इसके बाद पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। भगवान शिव को भांग, धतूरा, फल, फूल, मदार के पत्ते, बेल पत्र, नैवेद्य आदि चीजें अर्पित करें। इस समय शिव चालीसा और शिव स्त्रोत का पाठ, शिव तांडव और शिव मंत्रो का जाप करें। पूजा के अंत में आरती कर सुख-समृद्धि शांति एवं धन वृद्धि की कामना करें। दिन भर उपवास रखें और संध्याकाल में प्रदोष काल के दौरान पुनः स्नान-ध्यान कर भगवान शिव की पूजा-उपासना करें। आरती कर फलाहार करें। रात्रि में भगवान शिव का सुमिरन एवं भजन करें। अगले दिन सामान्य दिनों की तरह पूजा-पाठ कर व्रत खोलें। इस समय ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।

महाशिवरात्रि का महत्त्व क्या है ?

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव जितना समय विश्राम करते हैं, उस काल को ‘प्रदोष’ अथवा ‘निषिथकाल’ कहते है । पृथ्वी का एक वर्ष स्वर्गलोक का एक दिन होता है । पृथ्वी स्थूल है । स्थूल की गति अल्प होती है अर्थात स्थूल को ब्रह्मांड में यात्रा करने के लिए अधिक समय लगता है । देवता सूक्ष्म होते हैं, इसलिए उनकी गति अधिक होती है । यही कारण है कि, पृथ्वी एवं देवताओं के कालमान में एक वर्ष का अंतर होता है । पृथ्वी पर यह काल सर्वसामान्यतः एक से डेढ घंटे का होता है । इस समय भगवान शिव ध्यानावस्था से समाधि-अवस्था में जाते हैं । इस काल में किसा भी मार्ग से, ज्ञान न होते हुए, जाने-अनजाने में उपासना होने पर भी अथवा उपासना में कोई दोष अथवा त्रुटी भी रह जाए, तो भी उपासना का १०० प्रतिशत लाभ होता है । इस दिन शिव-तत्त्व अन्य दिनोंकी तुलना में एक सहस्र गुना अधिक होता है । इस दिन की गई भगवान शिव की उपासना से शिव-तत्त्व अधिक मात्रा में ग्रहण होता है । शिव-तत्त्व के कारण अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा होती है ।
महाशिवरात्रि व्रत विधि कैसे करें ?

संपूर्ण देश में महाशिवरात्रि बडे उत्‍साह से मनाई जाती है । फाल्‍गुन कृष्‍ण पक्ष चतुर्दशी को भगवान शिव का महाशिवरात्रि व्रत करते हैं । उपवास, पूजा और जागरण महाशिवरात्रि व्रत के ३ अंग हैं । ‘फाल्‍गुन कृष्‍ण पक्ष त्रयोदशी को एक समय उपवास करें । चतुर्दशी को सवेरे महाशिवरात्रि व्रत का संकल्‍प करें । सायंकाल नदी अथवा तालाब के किनारे जाकर शास्‍त्रोक्‍त स्नान करें । भस्‍म और रुद्राक्ष धारण करें । प्रदोषकाल पर शिवजी के देवालय में जाकर भगवान शिव का ध्‍यान करें । तत्‍पश्‍चात षोडशोपचार पूजन करें । भवभवानीप्रित्‍यर्थ तर्पण करें । भगवान शिव को एक सौ आठ कमल अथवा बिल्‍वपत्र नाममंत्र सहित चढाएं । तत्‍पश्‍चात पुष्‍पांजली अर्पण कर अर्घ्‍य दें । पूजासमर्पण, स्‍तोत्रपाठ और मूलमंत्र का जप होने के उपरांत भगवान शिव के मस्‍तक पर चढाया हुआ एक फूल उठाकर स्‍वयं के मस्‍तक पर रखें और क्षमायाचना करें’, ऐसा महाशिवरात्रि का व्रत है ।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप अधिकाधिक करें
कलियुग में नामस्‍मरण साधना बताई गई है । महाशिवरात्रि को शिवजी का तत्त्व १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत होता है, उसका हमें अधिक लाभ हो इसलिए भगवान शिव के ‘ॐ नम: शिवाय ।’ मंत्र का जाप दिन भर करें ।

भगवान शिव की परिक्रमा कैसे करें ?

भगवान शिव की परिक्रमा चंद्रकला के समान अर्थात सोमसूत्री होती है । सूत्र का अर्थ है, नाला । सूत्र, अर्थात् धारा, जो अरघा से उत्तर दिशा में, अर्थात् सोम की ओर, मंदिर के विस्तार (परिसर) तक जाती है, उसे सोमसूत्र कहते हैं । शिवपिंडी को देखते हुए, उसके सामने खडे रहने पर हमारी दाईं ओर अभिषेक का जल जाने के लिए बनाई गई जलप्रणालिका (शालुंका से आनेवाला जल आगे ले जानेवाला स्रोत) होती है । परिक्रमा का मार्ग यहां से प्रारंभ होता है । हमारी बाईं ओर से आरंभ कर जलप्रणालिका के दूसरे छोर तक जाना हैं (घडी की दिशा में) । फिर बिना जलप्रणालिका को लांघते, मुडकर पुनः जलप्रणालिका के प्रथम छोर तक आना हैं । ऐसा करने से एक परिक्रमा पूर्ण होती है । यह नियम केवल मानव-स्थापित अथवा मानव-निर्मित शिवलिंग के लिए ही लागू होता है; स्वयंभू लिंग या चल अर्थात पूजाघर में स्थापित लिंग के लिए नहीं ।
प्रेम सागर पाण्डेय , नक्षत्र ज्योतिष वास्तु अनुसंधान केंद्र,{जन्मकुण्डली, हस्त रेखा, वास्तुदोष} रामजी चक दीघा (स्कूल रोड), पटना,निःशुल्क परामर्श ~ शनिवार दूरभाष ~ 9122608219/ 8877323328

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