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निज स्वार्थ में कर्णधारों ने, जन जन को गुट में बाँटा,

निज स्वार्थ में कर्णधारों ने, जन जन को गुट में बाँटा,

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
निज स्वार्थ में कर्णधारों ने, जन जन को गुट में बाँटा,
राजा नेता धर्मगुरु मठाधीश, स्वार्थ हित सबने हाँका।
कहीं क्षेत्रवाद की बातें, कुछ धर्म कर्म आधार बने थे,
जाति धर्म में बाँटा पंडितों ने, यह आरोप नहीं साँचा।


हर धर्म जाति में भेद बहुत, कर्म आधार सदा देखा,
शिया सुन्नी अहमदिया, मुस्लिम में भेद बहुत देखा।
ईसाई भी तो अलग अलग, अनेक गुटों में बँटे हुए,
श्वेतांबर दिगम्बर स्थानक, अलग जैन धर्म देखा।


पंथ अनेकों इस धरती पर, मानवता सबका आधार,
धर्म एक सम्पूर्ण सृष्टि में, सब धर्मों का मूल आधार।
पंथ के अन्दर भी पंथ, कदम कदम निज अहंकार दंभ,
ईसा मूसा सबका चिन्तन, सनातन ही उनका आधार।


ईसा मूसा से पहले भी, धर्म सनातन धरा पर था,
महावीर बुद्ध से पहले, धर्म सनातन धरा पर था।
वेदों से पहले धरती पर, कोई धर्म ग्रन्थ नहीं रचा,
ईसा मूसा बुद्ध चिन्तन, धर्म सनातन धरा पर था।


बस एक धर्म सनातन था, जाति का कोई भेद न था,
कर्म आधार शास्त्रों में, मानव मानव में भेद न था।
कौरव कुल के कुरू बने ज्यों, पांडु गुट वाले पांडव,
अनेक देश कुरुक्षेत्र युद्ध में, जाति का उल्लेख न था।


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