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नारी

नारी

हां री। मैं नारी हूं। मुझे ही अंगिकार कर तुम अपनी वीरता दिखाते हो।मेरे ही कारण वैभवशाली दिखाकर तुम धनवान कहलाते हो। मैं जब तुम्हारी जीभ पर विराजती हूं तभी तो तुम बुद्धिमान कहलाते हो।
हां मैंने ही नौ महीने अपने गर्भ में रख अपने ही खून से तुम्हें पाला। पिता मान तुम्हारा वंदन किया।भाई मान गले से लगाया।बेटा मान तेरा मुखड़ा चुमा
पति मान सर्वस्व न्यौछावर किया।
मैंने हां मैंनें ही कभी पति के नाम, कभी भाई के नाम कभी पुत्र के नाम व्रत किया।
और तूने। अपने अंदर धधक रही वासना की आग को शांत करने के बराबर छल किया।
एक सुबह जब तुम गंगा स्नान को गये थे, किसी ने तेरा ही रूप धर घर में प्रवेश किया। तुमने उसे निकलते देखा। पर उसे न दंडित कर मुझे ही पत्थर की मूर्ति बनने का श्राप दिया था। और मैं खुबसूरत नारी से पत्थर की मूर्ति बन गई।
तुम पांचों भाई मुझे छिपा लिया और मां से कहा मां देख मैंने क्या लाया है? काम की व्यस्तता के कारण मैंने बिना देखे ही कहा था जा सब मिलकर आपस में बांट लो। अपने मन में मेरे प्रति आए वासना को पूरा करने के लिए मां की वाणी को ढाल बनाया और मैं तुम पांचों की पत्नी बन गई। और कलंक मेरे सर मढ़ते हुए बहुपति विवाह का प्रचलन लाया। पंच कन्या में स्थान दिया
अपनी वासना को ही पूरा करने के लिए पुत्र लोभ का नाम दिया और बहुपत्नी विवाह का प्रचलन आरंभ किया। दशरथ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
तुमने मुझे खिलौना समझ तब तक अपने पास रखा जब तक तुम संतुष्ट नहीं हो गये। संतुष्ट होते ही मुझे घर के बाहर फेंक (तलाक कहकर) मेरी ही तरह दूसरा खिलौना ले आया।
तुमने ही भरी सभा में मेरा चीरहरण करना चाहा। मैं बार बार अपमानित होती रही ।मेरा धैर्य समाप्त हो गया। अंततः मैं अपना रुप बदली। और तेरा विनाश का कारण बनी। रामायण में वर्णित राम-रावण युद्ध और महाभारत में वर्णित कौरव-पांडव युद्ध का कारण मैं ही बनी ।और तुम आपस में मेरे लिए ही लड़ते रहे।

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