हमारी नयी पीढ़ी अपने मातृभाषा से दूर होती जा रही है

हमारी नयी पीढ़ी अपने मातृभाषा से दूर होती जा रही है|

आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है । मातृभाषा के रूप में जागरूकता लाने के उद्देश्य से २१ फरवरी को हर साल मातृभाषा दिवस मनाया जाता है । वैसे तो भारतवर्ष की राजभाषा हिंदी है , परंतु भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में बाइस भाषाएं शामिल हैं । इसके अलावा भारतवर्ष में लगभग बीस हजार भाषाएं मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं । विडंबना यह है कि हमारी नयी पीढ़ी अपने मातृभाषा से दूर होती जा रही है । मातृभाषा के रूप में बोली जाने वाली भाषाओं में भोजपुरी भाषा का अपना एक अलग नाम और पहचान है ।
भोजपुरी भाषा मुख्यतः बिहार के आरा , बक्सर , छपरा ,सिवान और गोपालगंज जिले तथा पूर्वी उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में बोली जाती है ।
मैं स्वयं बिहार प्रदेश के एक भोजपुरी भाषी सिवान जिला का रहने वाला हूं और मेरी मातृभाषा भोजपुरी हीं है । मेरा बचपन भोजपुरी भाषा बोलते हुए ही गुजरा है और अभी भी मुझे अपनी मातृभाषा भोजपुरी से बहुत प्यार है । घर में अपनों के साथ मैं भोजपुरी भाषा में ही वार्तालाप करता हूं । आइए अपने बचपन की एक बहुत मजेदार कहानी अपनी मातृभाषा भोजपुरी में इस अवसर पर आप सबके साथ बांट रहा हूं ।
बहुत पहिले के बात हवे तब हम ल‌ईकायीं में चौथा क्लास में अपना गांव के स्कूल में पढ़त रहनी । ओ घरी गांव देहात में ल‌इका ल‌इकी के शादी गरमी के दिन में बैशाख जेठ महीना में ह़ोत रहे । एक दिन सबेरे के समय गांव के हजाम ठाकुर हमारा दालान पर आके हमारा दादा जी से बोल ग‌इले जे आज रात के चुल्हियानेवार मंड़वा भात के आज्ञा नेवता बा र‌उरा पड़ोसी के घर से । उनका लड़की के ब्याह हो रहल बा आउर आज माड़ो मटकोर बा । दिन में माड़ो गड़ाई आउर रात में माड़ो के भात खिलावल जाई। दादा जी से एतना कह के हजाम ठाकुर चल ग‌इले । हमारा चुल्हियानेवार आज्ञा ना बुझाइल त हम दादा जी से पुछनीं जे इ का होला । दादा जी बतलवनी जे आज रात अपना घरे चुल्हा न जली आउर घर के सब लोग उनका घरे भोज भात खाई । मरदाना लोग उहां जा के खाई आउर मेहरारू लोग के खाना अपना घरे दे जाई लोग ।अब त भोज खाए जाए के बा एतना सुन कर मन खुशी से झूमे लागल । ओह दिन स्कूल में पढ़े में भी मन ना लागल आउर इहे बुझाव जे कब रात होई जे भोज भात मिली । आउर एक दू गो ल‌इका बोललन सन जे हमनियों के घरे नेवता आइल बा भोज भात खाए जाए के । तब इ सुन के आउर मजा आ ग‌इल जे सब ल‌इका एक साथे बैठ के खाइल जाई ।स्कूल से घरे अइला पर दादी भूंजा देहली खाए के त हम मना क दिहलीं जे ना आज कुछ ना खाएब , रात में भोज भात खाएके बाटे । पेट भर जाइ त भोज कैसे खाएब । सांझ के समय थोड़ा रात ग‌इला पर हजाम ठाकुर आके बोल ग‌इलन जे खाए के बीजे हो ग‌इल बा । अब त जल्दी से भोज खाए जाए के छटपटी लग ग‌इल । दादा जी बोलनीं जे सब लोग एक साथ चल आउर लोटा हाथ में ले ल लोगिन । उहां ग‌इला पर सब लोग पंघत में जमीन पर जाजिम पर बैठ ग‌इनीसन । बांटें परोसे वाला लोग पहिले पतल सामने रख ग‌इल । दादा जी बोलनीं जे पहिले पतल पर लोटा में से थोड़ा पानी छिड़क ल । फिर बांटें परोसे वाला लोग एक एक करके पतल पर भात ,दाल , तरकारी , कढ़ी ,बरी , झुरी पकौड़ी रख दिहलन । सबका बाद एक आदमी कटोरी में घी लेके आम का पता से सबका पतल पर दाल में घी डाल दिहलन । ओकरा बाद सब लोग बोललस जे अब शूरू होखे । एतना सुनते ही मन जे खाए खातिर छट पट करत रहल से खुश होके खाए के शूरू कर दिहलस। सबसे अंत में एक आदमी दही परोसे लागल । आज भोज ख‌इला के मजा आ ग‌इल । ख‌इला के अंत में पानी चलावे वाला लोटा में पानी भर दिहलन । ओकरा बाद सब लोग बोललस जे सबकर खा‌इल हो ग‌इल तो उठल जाव । बस सब कोई उठके हाथ धोवलस आ अपना अपना घर ग‌इल । माड़ो के भात खाके मजा आ ग‌इल ।
अपना अपना घरे तो रोज खा‌इल जाला , बाकिर भोज भात खाए में पांती में जमीन पर बैठ के खाए में जवन मजा आवेला ओकर बाते अलग होला । इ आनंद उहे समझ सकत बाटे जे कवनो दिन गांव देहात में अइसन भोज भात ख‌इले ह़ो‌ई ।
आशा करत बानी जे इ कहानी पढ़ के र‌उरा सबनी खुब आनंदित होखब।
जय प्रकाश कुंअर

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