"सरस्वती वंदना"
या कुन्देन्दुतुषारहारधवलाया शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा
या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमा
आद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां
जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं
पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं
बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
माँ! तू ज्ञान की ज्योति, विद्या की देवी,
तेरी वीणा संगीत का स्वर बिखेरती।
तेरे हाथों में पुस्तक, ज्ञान का भंडार,
तेरे चरणों में विनती, करो ज्ञान का उजियारा।
तेरी वीणा के तार, मन को मोह लें,
तेरे संगीत में, जीवन का सार।
तेरे ज्ञान का प्रकाश, अंधकार मिटा दे,
तेरी कृपा से, जीवन में खुशियां छा जाएं।
माँ! तू कला-कौशल की देवी,
तेरे आशीर्वाद से, कला फलती-फूलती।
तेरे हृदय में, प्रेम और करुणा का वास,
तेरे चरणों में, जीवन का आधार।
माँ! तू विद्यार्थियों की देवी,
तेरे आशीर्वाद से, ज्ञान प्राप्त होता।
तेरे मार्गदर्शन से, सफलता मिलती,
तेरे चरणों में, जीवन का सार।
माँ! तू सृष्टि की रचनाकार,
तेरे हाथों से, जीवन का निर्माण।
तेरे ज्ञान से, जग प्रकाशित होता,
तेरे चरणों में, जीवन का उत्सव।
माँ! तू सरस्वती, ज्ञान की देवी,
तेरी वंदना करते हैं, सभी जीव।
तेरे आशीर्वाद से, जीवन सफल होता,
तेरे चरणों में, जीवन का समर्पण।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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