डॉ सुमेधा पाठक
करती हूं शत शत नमन
मेरी प्रीत पाती
स्वीकार ले माँ
जगती के कलुष तम हर
क्लेश ,वैमनस्य आच्छादित अन्तरतम
जड़ चेतन में नव प्रकाश भर
पथ आलोकित कर दे माँ!
हे हंसवाहिनी! शुभ्र वसना!
मानव मन निस्सीम अज्ञानी
सर्वत्र मनुष्यता पर पशुता भारी
प्रज्ञाचक्षु खोल दे माँ!
हे श्वेतवर्णी! वीणापाणि!
मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार ले माँ!
भारत के कण कण में
शिक्षा की नवजोत जगे
नर नारी में हो समानता
नहीं कहीं आक्रोश पले
नव युग के नव विहान के
अधरों पर नव सुर सजे
हे वागीशे! माँ भारती!
मेरी प्रीत पाती स्वीकार ले माँ!
मेरी प्रीत पाती
स्वीकार ले माँ
जगती के कलुष तम हर
क्लेश ,वैमनस्य आच्छादित अन्तरतम
जड़ चेतन में नव प्रकाश भर
पथ आलोकित कर दे माँ!
हे हंसवाहिनी! शुभ्र वसना!
मानव मन निस्सीम अज्ञानी
सर्वत्र मनुष्यता पर पशुता भारी
प्रज्ञाचक्षु खोल दे माँ!
हे श्वेतवर्णी! वीणापाणि!
मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार ले माँ!
भारत के कण कण में
शिक्षा की नवजोत जगे
नर नारी में हो समानता
नहीं कहीं आक्रोश पले
नव युग के नव विहान के
अधरों पर नव सुर सजे
हे वागीशे! माँ भारती!
मेरी प्रीत पाती स्वीकार ले माँ!
डॉ सुमेधा पाठक
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