जबतक तुम थी तबतक ही यह दुनिया भी दुनिया थी
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जबतक तुम थी तबतक ही यह दुनिया भी दुनिया थी ,
अब सरायफानी है, जो गुलमोहर की बगिया थी।
मत्लबपरस्त आलम में सबकुछ बेगाना लगता है ,
काँटों का बिस्तर है, जो तब फूलों की सजिया थी।
रात-रात लगती है जैसे जहर पी रहा हो सुकरात,
जीवन के जख़्मों की खातिर मरहम की मलिया थी।
मुझे माफ कर देना साथी,जो गुनाह कुछ भी हो,
मैं नटखट बच्चे-जैसा, तुम सोने की गुड़िया थी ।
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