कभी कभी
शब्दों के मोहपाश में,इस कदर उलझ जाते हैं हम,
अपना अस्तित्व,
पहचान
भूल जाते हैं हम।
बह जाते हैं
भावनाओं की लहर के साथ
तिनके के मानिन्द
बिना सोचे विचारे
अपना मान सम्मान।
कभी कभी
भूल जाते हैं हम
खडे हैं
उम्र के ढलान पर
शायद
समझने लगते हैं
खुद को
अभी तो जवान हैं हम।
अ कीर्तिवर्धन
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