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वेदनाएं

वेदनाएं

आओ तुम मेरी पीड़ा को बांट लो
बांट लो मेरे दुख दर्द और क्रंदन को
स्वयं को समर्पित कर दो कुछ पल मुझ पर
सहेज सकूं अपने बिखरे स्पंदन को


बेचैन हो पुकार रही है हमें दिग दिशाएं
देखु उगता सूरज और देखु अस्ताचल
अंतस बाह्य की चेतना सब एक सा लगे
विशाल अटालिकाए गांव शहर और वनांचल


नित्य नृत्य करती ख्वाइश मेरे सपन पर
खनकती है चूड़ियां रून-झुन बजाती है पायल
मृदुल स्नेहिल आमंत्रण दे जाती हमको
और आभासी स्पर्श से कर जाती हैं घायल

मैं दरिया प्रेम ममता दया करुणा की
युगों युगों से पूज रहा यह जग हमको
मैं देवी हूं कभी समझ ना पाई खुद को
हां हर्षित मुदित हो पल्लवित किया सबको


विभिन्न चरित्र में खूबसूरत किरदार मेरा
हूं पूनम की चंदा मगर लुप्त हैं अधर से मुस्कान
कुंदन जनित स्वप्न मेरे कंचन सा तन बदन
मौजूद जीवन संगीत पर कंठ से हैं विस्मृत गान

हे प्रभु आन बसो मेरे मन मंदिर में
तिमिर छटकर आलोकित कर दो उर का आंगन
ध्वनि का होने लगे निरवता में होले होले संचार
संवाद कर सकें बीना (रागी) तुमसे और भर उठे कोना-कोना ए मन


डॉ बीना सिंह*रागी*
भिलाई छत्तीसगढ़
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