राष्ट्र प्रेम जिसके मन में, प्रखर होकर आता है,
जाति धर्म और क्षेत्रवाद, गौण वहाँ हो जाता है।जाति तो है जन्मना, पर इससे कब पहचान बनी,
कर्मों का लेखा जग पढ़ता, इससे जाना जाता है।
सेठ नाम रहते फक्कड़, लल्लू अफसर सा बनकर,
व्यवहार मान दिलाता, औ' जग मे पहचान कराता है।
जिसको हम पागल कहते, वह ही निश्छल मन होता,
राष्ट्र समर्पित तन-मन-धन, पागल ही तो कहलाता है।
नहीं कोई अभिलाषा निज की, बदले में कुछ पाने की,
राष्ट्र का गौरव अमर रहे, अभिलाषा में शीश कटाता है।
जन्मभूमि पर कुर्बा हो जाऊँ, चाहे जितने जन्म गवाऊँ,
रहे तिरंगा सदा शीर्ष पर, यह सोच सोच मन इतराता है।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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