वसुधा पुकारती
डॉ रामकृष्ण मिश्रजय जय जग जननि देवि
जय हे सुर भारती ।।
वासंतिक प्रकृति मुदित
मनहर छवि सृजित प्रथित
स्वागत में मुग्ध मना
वसुधा सँवारती ।।
तमसावृत आज लोक
रचता विध्वंस- शोक
जन धन क्षय वृत्ति हानि
लाभ रश्मि हारती।।
मानस गृह कोलाहल
तृष्णा प्रतिहत निर्बल
द्वेष द्वंद्व ईर्ष्याएँ
नाश ही दुलारतीं।।
आओ माँ शारदे
समुज्वला प्रकाश दे
अंतर चैतन्य झरे
वसुधा पुकारती।।
***********************रामकृष्ण
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