भाग्य को क्या कोसना
डॉ रामकृष्ण मिश्र
भाग्य को क्या कोसना
जीवन समर में।
बुद्धि -बल कर्मण्यता का
साहसिक संधान।
चल सकेगा कहाँ तक
निष्कृप वृथा व्यवधान।।
खूब तप जाना पड़े
जलते प्रहर में।।
धुर विरोधी भी यहाँ
उपकार करते से
और अपने भी जहाँ
अपकार करते से।।
किंतु दृढतम धीर हो
तम के नगर में।।
आँधियों में जो जले
कंदील सा अविकल
हौसले उसके चमकते
हाथ ले संबल।
फिर न अँकडेगी विवशता
उस डगर में ।।
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