संकुचन हो
या विस्तार होपर दूर जब भी हो
सम्पूर्ण अहंकार हो।
मैं
मैं न रहूँ
तुम
तुम न रहो
बस
प्यार का
पारावार हो।
न रहें चाहतें
कुछ पाने की
न ही खोने का
कोई विचार हो।
जो है सामने
वही सब कुछ
प्यार की पराकाष्ठा
ऐतबार हो।
मैं पुरुष
तुम स्त्री
मैं अहम्
तुम बन्दगी
अहंकार बन मैं खड़ा
मां की ममता तुझमें ढली
कौन पूर्ण
अपूर्ण कौन
नहीं कोई जानता
द्वंद को
निस्तार कर
नई राह पर
चल पड़ो।
तुम सौन्दर्य
मैं साधना
तुम शक्ति
मैं आराधना
तुम भावना
मैं कामना
तुम धरा
मैं आसमां
तुम सर्जना हो जगत की
मैं निरीह शून्य सा
जब तुम्हारे संग चला
शून्य से
अनन्त हुआ।
है यही बस कामना
स्नेहिल जीवन रहे
हो समर्पण साथ में
तुम तुम न रहो
मैं भी मैं न रहूँ
बस एक हों
चलती रहे
यह साधना।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com