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सपनों के फूलों में काँटे

सपनों के फूलों में काँटे

डॉ रामकृष्ण मिश्र
सपनों के फूलों में काँटे
उगने लगे अरुचिकर
फिर भी ,आँखों में वसंत का
प्यार उभर आता है।।
जिन राहों पर अपनी बोयी
हरियाली सहलायी
बहुत काल तक नहीं चल सकी
साथ- साथ परछाई ।।
असंतुलित जीवनाशा का
चक्र बिखर जाता है।।
घर की छत- दीवारों में भी
कहा सुनी होती है।
मनके मनके बिखरे टूटे
व्यथा -कनी रोती है।
साहस का आकाश एक बस
तभी सँवर आता है।।
अपने- अपने अहंकार हैं
सब के आभूषण से।
थोड़ा सा आवेग और प्रतिरोध
भाव गोपन से।
निर्लज्जता हाँकती है 
रथ मान उतर जाता है।।
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