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लोकतंत्र के हत्यारे,

लोकतंत्र के हत्यारे,

लोकतंत्र के हत्यारे, अब लोकतंत्र की बात करें,
बलात्कार के संरक्षक, महिला हित की बात करें।
नारों से जग को भरमाया, ग़रीबी मुक्त भ्रम फैलाया,
भारत माता की जय पर, राष्ट्र विरोध की बात करें।

जाने कितने लगा मुखौटे, लूट रहे थे दशकों से,
एक रूपये में पिचासी पैसे, लूट रहे थे दशकों से।
सत्ता ख़ातिर लेट रहे, वो चीन पाक के कदमों में,
समझ रहे थे भाग्य विधाता, जो भारत के दशकों से।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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