वो मिलने के किस्से ,
बिछड़ने की घड़ियां ।दरकते वो रिश्ते ,
फिर आंसू की झड़ियां ।
दबाता हूं दिल में ,
पर आह बन निकल ही जाती है ।
ये जुबान भी कैसी चीज है ,
तेरा नाम ले फिसल ही जाती है ।
तूं गई सो गई ,
खुब हताशा हुआ ।
अपना जीवन भला था ,
अब तमाशा हुआ ।
फिर भी चाहा नहीं ,
किसी की उंगली उठे ।
अपने रिश्ते को ,
कोई न कहे झूठे ।
भले आंखों से ,
आंसू की दरिया बहे ।
अपना मुख बंद ,
रह कर न कहानी कहे ।
पर शब्द बन प्रेम की आह ,
मुंह से निकल ही जाती है ।
ये जुबान भी कैसी चीज है ,
तेरा नाम ले फिसल ही जाती है ।
जय प्रकाश कुंअर
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