तेरी तस्वीर देखते देखते ,
अब आंखें पथरा गई हैं ।मन बातें करने को चाहता है,
पर तस्वीर में जुबान नहीं है ।
तेरी आंखों की भंगिमा भी ,
एक जगह रुक सी गई हैं ।
इस बेजुबान विभिन्न भंगिमा रहित ,
तस्वीर को सीने से लगाता हूं ।
मन कुछ सुनना चाहता है ,
तब परेशान सा हो जाता हूं ।
अब तो तस्वीर से निकल ,
मेरे सामने आ जाओ ।
मेरे मन को कुछ सुकून मिले ,
ऐसी कुछ प्यारी बातें सुनाओ।
जय प्रकाश कुंअर
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