गंगनहान ( भोजपुरी कहानी )
बहुत पहिले के बात हवे। राम कुमार के माई उनका से कहली जे ए बबुआ अब हमार बहुत उमर हो गइल । अब कवनों दिन हमार आंख बंद हो जाई आउर इ दूनियां छोड़ के हम चल जाएब । बाकिर एगो सारधा मन में बाकी रह गइल जे हम कातिक के पुरनवासी के गंगा नहान ना करे पवनी । अबकी बार तूं हमारा के गंगा नहान करा द जे हमरा मरला के बाद मुकुती मिल जाई । अब कातिक पुरनिमा में कुछे दिन बाकी बाटे ।
अपना माई के इ बात सुनके राम कुमार चिंता में पड़ गइले आउर सोचे लगले जे कइसे माई के इ सारधा पुरा होई । अपना गांव के एगो गड़िवान से पुछले जे हो भाई ताहार बैलगाड़ी जदी खाली होखे त हमारा माई के एबार कातिक पुरनिमा के दिन सेमरियां ले चल जवना से कि माई के गंगा नहाए के सारधा पुरा हो जाव । माई ओतना दूर पैदल जाए लाएक ना बाड़ी । तोहार गाड़ी के जवन भाड़ा होई से हम दे देहब । गड़िवान भाई राजी हो गइले आउर राम कुमार से बोलले जे तू माई के लेके चले के तेयारी कर । इ बात जब राम कुमार के माई सुनली त खुब खुश भइली ,
आउर सेमरियां गंगनहान पर जाए के तेयारी में लग गइली ।
कातिक पुरनिमा के दिन सेमरियां में सरयू ( गंगा ) नदी का किनारे खुब मेला लगेला । सब लोग गंगनहान करेला आउर गौतम रिखी के दरसन करेला । उहां एक दिन पहिले से लोग पहुंच जाला आउर रात में उहां ठहरेला। रात में लोग खुब मेला देखेला आउर खरीदारी करेला। कारतिक पुरनिमा के दिन सुबह मैं गंगनहान करेला ओकरा बाद मेला घुम घाम के लोग अगला दिन घरे लौटे के तेयारी करेला ।
सब मिला के तीन दिन टाइम लग जाला । एह तीन दिन खातिर खाए के इंतजाम बेसी ल़ोग अपना घर से ही सतुआ , चिउरा , लिट्टी ठेकुआ बना के ले जाला। एह से पइसा के भी बचत होला आउर घर के सुध खाना भी टाइम से मिल जाला ।
राम कुमार के माई भी मेला जाए खातिर सतुआ चिउरा ठेकुआ बनावे के तइयारी में लग गइली । सतुआ खातिर राम कुमार से मकई
चना बाजार से मंगा के घोनसार में भूंजा भूंजववली । ओकरा बाद अपना हाथ से जांत में पिस के सतुआ तेयारी कइली ।
चिउरा खातिर धान पानी में फुला के ओकरा के उलवा के घाम में सुखा लिहली । ओकरा बाद चूल्हा पर लोहई कड़ाही में घानी क के ओखर में मुसल से कुट के आउर खोइला से चला के चिउरा तेयारी कइली । भुसावाला चिउरा सूप से फटक के साफ चिउरा अलग कर के रख लिहली मेला ले जाए खातिर ।
राम कुमार से बाजार से गहूं के आटा , चना के सतुइ ,आउर गुड़ आउर डालडा घी , कुछ मसाला नमक लिट्टी में डाले खातिर ,
मंगा के ठेकुआ छान लिहली । चना के सतुइ आटा का लोईया में भर के लिट्टी छान लिहली ।
इ सब तेयारी भइला के बाद कातिक पुरनिमा के एक दिन पहिले राम कुमार गड़िवान भाई के बुला के अपना माई के बैलगाड़ी में बइठा के अपना संगे गंगनहान करे खातिर सेमरियां चल दिहले ।
चूंकि दूर रास्ता तय करे के रहे आउर गाड़ी के बैल भी भूख प्यास से बेहाल हो गइल रहलन सन , एसे रास्ता में एक जगह मानसाठ के पोखरा पर गाड़ी रोक दिहल गइल । उहां छोट मोट बाजार बैठे ला एह से कुछ ज़रूरी सामान मिल जाला । गड़िवान भाई अपने भी कुछ खइले आउर बैल सन के भी कुछ दाना पानी दिहलन । ओकरा बाद फिर आगे के रास्ता शुरू भइल । कुछ समय के बाद
सेमरियां पहुंच के गोदना सेमरियां मैं ठहरे के जगह मिलल । उहां एतना ना भीर रहे कि पहिले पहुंच के सब लोग निमन निमन ठहरे वाला जगह छेंक लेले रहल लोग । हमनी के सिसवानीं में पुआरा बिछा के बैठ सुत के रात बितावे के परल । मेला बाजार में अइसन ही होला । खैर , घर के सामान खा पी के गड़िवान सहित खुब अच्छा लागल । रात में जेतना दूर माई चले सकल ओतना दूर मेला देखल गइल । अगला दिन कातिक पुरनिमा के सबेरे सरयू ( गंगा ) नदी में स्नान , पूजा , दान माई के साथ कइनी ओकरा बाद माई के गौतम रिखी के दरसन भी करवा दिहनी । हमार माई गंगनहान करके आउर गौतम रिखी के दरसन कर के खुब खुश भइली । माई के मन में जे अच्छा लागल से मेला से खरीदारी भी कइली ।
अब मेला से लौटे के समय हो गइल त हम गड़िवान भाई से बोलनी जे अब बैलगाड़ी जोत ल जे माई के बैठा के लौटल जाव ।
एह तरह से हमनी लौट के अपना घर आ गइनी सन । माई गंगनहान करके खूब खुश भइली आउर हमारा के खुब आशीरबाद दिहलीं।
जय प्रकाश कुंअर
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