कौन है अज्ञात यहाँ, ज्ञात सबको कीजिये,
कौन दंगाई यहाँ, जाँच उसकी भी कीजिये।कब तलक खामोशी से देखें, मंजर बर्बादी का,
आतंक के समर्थको को, पहले अन्दर कीजिये।
सामने दिखते हैं चेहरे, भीड फिर भी कह रहे,
सियासत मे करेले को, आम जैसा कह रहे।
कोई मरे हिन्दू यहाँ तो, बात उसकी होती नही,
मुस्लिम अगर कहीं मरा, असहिष्णुता कह रहे।
है अजब सी मानसिकता, स्वार्थ मे नेता घिरे,
आतंकियों के हमदर्दो का, देश पर हक कह रहे।
आदमी की कीमत यहाँ अब, धर्म से ही जानते,
अलगाववादी देश के, रक्षक खुद को कह रहे।
दंगाईयों के समर्थन, कुछ सियासी दल खडे,
वोट और सत्ता की खातिर, देशभक्त कह रहे।
विकास के नाम पर, जाति धर्म की सियासत,
तुष्टिकरण के समर्थक, धर्मनिरपेक्ष कह रहे।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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