विपत्ति से ना घबराओ,
विपत्ति जब आती है अपने साथ शक्ति भी लाती हैं|
क्यों रोता हैं तू मनुज,
तेरी नैया बीच मजधार में नहीं डूबती,
तू व्यर्थ की चिंता करता है,
नौकायन हैं तू अपने जीवन का|
वीरता से इसका सामना कर,
दुःख हमें इतना नहीं मिलता|
जो दुःख प्रभु महादेव ने उठाया,
माता के शव कंधे पर रखकर तांडव कर संपूर्ण ब्रह्मांड को हिलाया|
वो नीलकंठ ही थे जिन्होंने हलाहल को पीकर श्रृष्टि को बचाया|
क्या रघुनंदन का जीवन सुखमय था.
पिता को खोकर, सुख वैभव त्याग कर.
वन की ओर प्रस्थान किया|
मां सीता हरण, रावण मरण.
सबका उन्होंने उद्धार किया|
क्या कान्हा की बात करू.
वह तो कारावास में जन्म लिए|
माता पिता से बिछड़ कर तभी कंस का वध किए|
जब तक सृष्टि का पालनहार हैं तेरे साथ,
कोई बाल भी बांका ना कर पाए,
तब तक सिर पर हैं इनका हाथ|
स्वरचित अप्रकाशित रचना
ऋचा श्रावणी
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