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जिस दिन सोचोगे जमाने की खातिर,

जिस दिन सोचोगे जमाने की खातिर,

लेखनी को तुम्हारी नयापन मिलेगा।
जीने लगोगे जब वतन की खातिर,
जिंदगी को जीने का मकसद मिलेगा।
लगाकर तो देखो, एक वृक्ष धरा पर,
बसंती पवन का, छुवन संग मिलेगा।
इंसानियत की राह पर दो कदम रखो,
वैचारिक उड़ान को गगन भी मिलेगा।

डॉ अ कीर्तिवर्धन 
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