श्री बाबू के समय बिहार देश में प्रथम स्थान पर रहा:-प्रेम कुमार,महासचिव,बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन पटना
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह जिन्हें सम्मान से पूरा देश श्री बाबू के नाम से जानता है। वर्तमान समय में दलित राजनीति को लेकर देश और बिहार की राजनीति में अपने-अपने स्तर से विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा हस्तक्षेप किए जाते हैं। दलित राजनीति को दिशा और दशा देने के लिए वर्तमान राजनीतिज्ञों द्वारा भले ही वैमनस्यता बढ़ाने का काम किया जाता हो परंतु महापुरुषों के द्वारा दलितों के सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए जो संघर्ष किया जाता है उसे आज की राजनीति में विमर्श का मुद्दा नहीं बनाया जाता। ऐसे ही एक महामानव हुए बिहार केसरी डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह।
श्री बाबू के नाम से चर्चित बिहार केसरी ने दलितों को कभी राजनीति का हिस्सा नहीं माना अपितु वह दलितों के सामाजिक बराबरी और समानता के लिए अपनी सत्ता और कानूनी सहयोग के साथ-साथ अपनी पहल से सामाजिक भेदभाव मिटाने का भी प्रयास किया।
ऐसे ही एक प्रसंग में जब देवघर के प्रख्यात शिव मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित था तो श्री बाबू ने दलितों को मंदिर में प्रवेश कराने के लिए संघर्ष किया और दलितों के लिए देवघर का दरवाजा सदैव-सदैव के लिए खुल गया।
बिहार केसरी दलितों को देवघर के प्रख्यात रावणेश्वर शिव मंदिर में प्रवेश कराने के लिए स्वयं दलितों के साथ देवघर गए। वहां के पंडे-पुजारियों ने श्री बाबू का जमकर विरोध किया। कई लोगों ने उन पर प्रहार भी किए परंतु वे विचलित नहीं हुए और दलितों के साथ देवघर के मंदिर में प्रवेश कर मानवीय संवेदना और समानता की प्रखर ज्योति जला दी।
जातीय विद्वेष और असमानता को भले ही आज भी बढ़ाने वाले राजनीतिज्ञ तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं परंतु श्री बाबू ने एक बार फिर से जातीय समानता के लिए बिहार में स्वजातीय जमींदारों के विरुद्ध कड़े जमींदारी उन्मूलन कानून को लाया। दरभंगा महाराज ने उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और वहां उसे खत्म भी किया गया परंतु फिर से विधानसभा में विधेयक लाकर उन्होंने जमींदारी उन्मूलन को लागू कर दिखाया।
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बिहार केसरी डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह
जन्म 21 अक्टूबर 1887
जन्म भूमि :- ग्राम-माउर, बरबीघा, शेखपुरा।
पिता का नाम- श्री हरिहर प्रसाद
पत्नी का नाम- श्रीमती रामरुचि देवी।
शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राथमिक विद्यालय से
1906:- इंट्रेस की परीक्षा जिला स्कूल मुंगेर से पास किया।
1914:- पटना कॉलेज से श्री बाबू ने एफ़ ए बी ए, एम ए (इतिहास) किया। कोलकाता विश्वविद्यालय से बीएल की परीक्षा पास की।
1915- मुंगेर से वकालत की शुरुआत
आंदोलन:- 1916 में बनारस में महात्मा गांधी के संपर्क में आए और आंदोलन में कूद पड़े।
1918 में निलहे साहब के खिलाफ किसानों की सफल पैरवी की।
1920 में असहयोग आंदोलन में कूद पड़े।
1922 में मुंगेर में शाह मोहम्मद जुबेर के आवास से पहली गिरफ्तारी हुई।
1930 में बेगूसराय के गढ़पुरा में नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार किए गए।
1937 में बिहार प्रक्षेत्र के प्रथम प्रधानमंत्री चुने गए।
1939 में राज बंदियों के प्रश्न पर त्यागपत्र दे दिया।
1940 में पुनः गिरफ्तार कर लिए गए।
1941 को रिहा किए गए।
1942 भारत छोड़ो आंदोलन में पुनः गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेज दिए गए।
1946 में मुख्यमंत्री का पदभार संभाला।
31 जनवरी 1961 को पटना में निधन हो गया।
पढ़ने के लिए बिहार केसरी करते थे और लगाते थे चपत भी:- आदित्य नारायण सिंह
बिहार केसरी डॉक्टर कृष्ण सिंह के ग्रामीण एवं 85 वर्षीय आदित्य नारायण सिंह ने बिहार केसरी के सान्निध्य में अपनी किशोरावस्था बिताई है और कई संस्मरण वे सुनाते हैं।
आदित्य नारायण सिंह कहते हैं कि जब भी बिहार केसरी गांव आते थे तो उनको प्यार से चपत लगाते थे और कहते थे कि पढ़ो, पढ़कर ही आदमी बनोगे और यदि पढ़ने में परेशानी हो या खर्चा ना जुटे तो मुझसे संपर्क करो, मैं मदद करूंगा।
वे कहते हैं कि श्री बाबू साहित्य प्रेमी और पढ़ने वाले थे। पढ़ाई में गांव के कई लोगों की हमेशा मदद करते थे और इतना ही नहीं इधर उधर के लोगों को भी वे पढ़ाई के लिए प्रेरित करते थे।
आदित्य नारायण सिंह बताते हैं कि गांव में जब भी बिहार केसरी आते थे तो बरबीघा बिहार मोड़ पर ही वे सभी को हिदायत दे देते थे कि गांव में वह एक मुख्यमंत्री नहीं हैं और आम आदमी की तरह जा रहे हैं। वे साधारण सी चौकी पर बैठते थे और लोगों से आम आदमी की तरह ही मिलते थे।
बड़ो को पैर छू कर प्रणाम करना उनकी आदत थी।
इतना ही नहीं यदि उनके आने की खबर पर जिला के कलेक्टर एसपी आते थे तो बिहार केसरी उनसे नाराजगी व्यक्त करते हुए चले जाने को कहते थे।
बिहार केसरी कलेक्टर और एसपी को कहते थे कि वे अपने गांव में सुरक्षित नहीं रहेंगे तो कहां सुरक्षित रहेंगे? गांव में उनको किसी प्रकार की सुरक्षा नहीं चाहिए। गांव वाले लोग उनकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर हैं। श्री बाबू सादगी की प्रतिमूर्ति थे ।
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