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वो एक बार पलट कर ज़रुर देखेगा

वो एक बार पलट कर ज़रुर देखेगा

मुझे चाहेगा मगर हर क़सूर देखेगा।
गुलाब प्यार से उसने दिया था महफ़िल में
तो उसी प्यार का चढ़ता सुरूर देखेगा।
है जिसके नाम पे सबकुछ लुटा दिया मैंने
वो उलझनों में भी मेरा शऊर देखेगा।
वो धड़कनों में बसा है बता रही फिर भी
तड़प दिलों की भी बनके हुज़ूर देखेगा।
बुला रही है हवा लौटकर चले आओ
मेरी निगाह में खुद बेकसूर देखेगा।
हकीकतों को कहानी बता दिया उसने
कि ख़्वाब करके मेरा चूर-चूर देखेगा।
ग़ज़ल कहूँ या लिखूँ शायरी बता मुझको
मेरे ग़मों में भी मेरा ग़ुरूर देखेगा।
उषा श्रीवास्तव 'उषाराज '
गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश स्वरचित
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