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हल्दू हल्दू बसन्त का मौसम

हल्दू हल्दू बसन्त का मौसम

शीतल हवा कभी गर्म है मौसम
रक्तिम रक्तिम फूले प्लास
सखी तू क्यों है उदास?

सज़ल नेत्र क्यों खड़ी हुई है?
दुखियारी सी बनी हुई है
क्यों छोड़ रही गहरी श्वास
सखी तू क्यों भई उदास?

केश तुम्हारे खुले हुए हैं
बादल जैसे मचल रहे हैं
बसन्त मे सावन की आस
सखी तू क्यों है उदास?

वृक्ष पल्लवित हो रहे हैं
पीत पत्र संग छोड़ रहे हैं
नव जीवन सी सजी आस
सखी तू कैसे बनी उदास?

रंग बिरंगे फूल खिले हैं
भँवरे उन पर मचल रहे हैं
तितली भी मकरंद की आस
सखी तू किसलिए भई उदास?

कलियाँ खिलती, भँवरे गाते
पेड़ों पर पक्षी शोर मचाते
चहुँ और सजा है मधु मास
सखी तू कैसे भई उदास?

पिया मिलन जल्दी होगा
भँवरा फूल संग होगा
रखो जीवन मे विश्वास
सखी तू मत हो उदास।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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