मुश्किलों को हराने की ज़िद है|
सन्जू श्रृंगी
मुश्किलों को हराने की ज़िद है आज फिर मुस्कुराने की ज़िद है
है दूर बहुत ये फलक तो क्या
चांद तारे तोड़ लाने की ज़िद है
रूठ बैठे हैं हमसे जो बेवजह
उन अपनों को मनाने की ज़िद है
बांटकर खुशियां ज़माने में सारी
उदास चेहरों को हंसाने की जिद़ है
चल पड़े गांव से शहर की ओर
बस दो पैसा कमाने की ज़िद है
आंधियों का है जोर मगर फिर भी
रेत के घरौंदे बनाने की ज़िद है
नज़र से नज़र भी मिलाते नहीं जो
उन्हीं से दिल मिलाने की ज़िद है
सन्जू श्रृंगी
कोटा,राजस्थान
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