मुझे अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे संग यूँ लड़ना मुझे अच्छा नहीं लगता,किसी पागल के मुँह लगना मुझे अच्छा नहीं लगता।
मेरी आस्तीन में रहकर मुझे ही रोज डसते हो,
बिना आस्तीन के रहना मुझे अच्छा नहीं लगता।
महज रुपयों की खातिर जो वतन को बेच खाते हैं,
उन्हें इस देश का कहना मुझे अच्छा नहीं लगता।
कभी चंदा व सूरज तोड़कर लाने को मत कहना,
दीये का बेवजह जलना मुझे अच्छा नहीं लगता।
यतीमों, दीन-दुखियों के हृदय की आह लिखता हूँ,
सियासत की रपट लिखना मुझे अच्छा नहीं लगता।
वजह हर मौत की होती है मानो या न मानो पर,
कतल को खुदकुशी सुनना मुझे अच्छा नहीं लगता।
अगर जिंदा हो तो सच को अवध सच बोलकर देखो,
कि मुर्दों की तरह बहना मुझे अच्छा नहीं लगता।
डॉ अवधेश कुमार अवध
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