किताबें तो हमने बहुत पढ़ी
किताबें तो हमने बहुत पढ़ी, कुछ का कुछ भी याद नही,कुछ से कुछ बहुत ही भाया, उसको भुलाने की बात नहीं।
कभी कभी तो याद की ख़ातिर, पन्ना मोड़ दिया करते थे,
ख़ास बात को रेखांकित करते, भूली बिसरी बात नहीं।
दौर आज भी वही पुराना, जब पढ़ने बैठा करता हूँ,
ख़ास बात को लिख लेता, कुछ आत्मसात् करता हूँ।
मोड़ कर रखा पन्ना ख़ास, ख़ामोश रह प्रतीक्षा करता,
वर्षों बाद खुली किताब, उसका अध्ययन करता हूँ।
गर्वित होता वह पन्ना, जिसको हमने कभी मोड़ा था,
अपनी व्यस्तताओं के चलते, तन्हा उसको छोड़ा था।
मुस्कराती वह पंक्तियाँ, जो रेखांकित हमने की थी,
रोमांचित कर जाते शब्द, जिनसे नाता जोड़ा था।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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