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एक पिंजर- सा हमारा घर

एक पिंजर- सा हमारा घर

डॉ रामकृष्ण मिश्र
एक पिंजर- सा हमारा घर
किन्तु केवल नहीं में।।

समस्याएँ तीलियो सी लौह निर्मित
और इच्छाएँ अपेक्षित अनापेक्षित।
सुलभ दानो की कटोरी बाँधती है
विवश है आवेग के समवेत स्वर
किन्तु केवल नहीं मैं ।।

स्वार्थ है ,संतृप्ति है, आकांक्षाएँ भी
निकलता है, विवशता है, प्रतीक्षाएँ भी।
द्वेष, ईर्ष्या, दंभ और प्रदर्शनाकांक्षा
जीविताशा धन पिपासा हैं सभी
किन्छु केवल नहीं मैं।।

तीलियों‌ से हवा तो आती रही
झींगुरों की झनक भी भाती रही ।
थातियों की सुगबुगाहट वैधती सपने
मुखर होती वेदनाएँ मुस्कुराते पर।।
किन्तु केवल नहीं मैं।। ***********
रामकृष्ण
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