अतिवादी बन कभी बेटियों, बेटों को स्थान दिया,
कभी नहीं सोचा तुमने, भेदभाव का काम किया।बेटी तो है मान घरों की, बेटों से घर की पहचान,
बेटी अच्छी बहु ख़राब, दामाद को सम्मान दिया।
बेटी इतनी अच्छी तो, क्यों सास ससुर पीड़ित रहते,
दो पाटों के बीच बताओ, क्यों बेटे अब पिसते रहते?
बहु चाहिए नौकरी वाली, घर के भी सारे काम करे,
बेटी रहती महारानी सी, क्यों सास ससुर घिसते रहते।
कहते बेटी- बेटे जैसी, बहु क्यों फिर ग़ैर लगे,
दामाद भी बेटे जैसा, बेटा क्यों फिर ग़ैर लगे?
बेटी माँ बाप की प्यारी, बहुओं से नफ़रत भारी,
दामाद भी अच्छा है, क्यों अपना बच्चा ग़ैर लगे।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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