भावना लघु गात मेरी
डॉ रामकृष्ण मिश्र
भावना लघु गात मेरी
फुदकती चिड़ियाऔर वैश्विक वर्जनाओं से
भरा आँगन।
अनैतिक नख-शृंग आँखें
घूरती रहतीं।
चिलचिलाती धूप सी कुछ
फब्तियाँ कसतीं।।
कौन जाने कहाँ ठिठका
पड़ा हो सावन।।
मुडेरों पर कहीं कलरव
कहीं उत्सव सा।
चिर प्रतीक्षित स्नेह का
सौंदर्य अभिनव सा।।
पादपों की शरण में संवास
अति पावन।।
सोचता है विवश मन
अपराधियों सा भी।
कहाँ भूल हुई कि फिसला
गया सहसा ही।।
बंधनों में भी डराता
भयानक आनन।।
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