"अनपढ़ मोहब्बत"

"अनपढ़ मोहब्बत"


कोई ज़ुबाँ नहीं होती, मोहब्बत की
बेशक़ अनपढ़ है, पर है बहुत ख़ूबसूरत


आँखों में उतरती है, दिल में समाती है
शब्दों की ज़रूरत नहीं,भावनाओं का संगम


एक मुस्कान, एक स्पर्श, एक नज़र
कह जाते हैं वो सब, ज़ुबाँ नहीं कह सकती


दिल की भाषा समझने वाले ही जानते हैं
मोहब्बत की खामोशी भी कितनी बोलती है


जैसे चाँदनी रात में सितारों की चमक
मोहब्बत भी जगमगाती है, बिन आवाज़


दिलों को जोड़ने का वो अनमोल धागा
जो बंध जाता है, तो कभी नहीं टूटता


मोहब्बत की ज़ुबाँ, शब्दों से परे है
जो समझ जाए, वो ही सच्चा प्रेमी है


इस ज़ुबाँ को सीखने की ज़रूरत नहीं
दिल खोल महसूस करो, मोहब्बत का जादू


शब्दों की ज़ंजीर तोड़कर, उड़ान भरती है
मोहब्बत की पंखों पर, खुले आसमान में


कोई ज़ुबाँ नहीं होती, मोहब्बत की
बेशक़ अनपढ़ है, पर है बहुत ख़ूबसूरत


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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